Aman G Mishra
Aman G Mishra 25 Aug, 2019 | 0 mins read

भारत भविष्य

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Aman G Mishra 25 Aug, 2019 | 1 min read

अरुण जेटली जी

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 25 Aug, 2019 | 1 min read

ग़ज़ल

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Aman G Mishra 25 Aug, 2019 | 1 min read
Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

ghazal

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

वीर सावरकर:2

सावरकर के जीवनी लेखक धनंजय कीर ने "वीर सावरकर" में लिखा है कि अपने क्रांतिकारी कार्य को अंजाम देने से पहले भगत सिंह सावरकर से मिलने के लिए रत्नागिरि गए थे और संभवत: वह सावरकर के विचारों से प्रेरित भी थे। समय के साथ-साथ मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले राजनीतिक दल और अन्य विघटनकारी ताकतें देश की ऊर्जा को समाप्त करने को आमादा हो गए, उसे देखते हुए भारतवर्ष के अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी तरह के तुष्टिकरण से इनकार करने वाले सावरकर के विशुद्ध राष्ट्रवाद का महत्व और बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए कि यदि हम भारत के पिछले 120 वर्ष के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि राजनीतिक अखाड़े में मुस्लिम रणनीतिकारों ने अलग-अलग बहाने से लगभग सभी हिंदू नेताओं से जब-तब बेहिसाब और गैरवाजिब छूट प्राप्त की है। नेताओं की इस सूची से बाहर केवल वीर दामोदर सावरकर ही नजर आते हैं जो मुस्लिम नेताओं की बातों में नहीं आए। यह तमाम छूट हिंदू हितों की तिलांजलि देकर और मुस्लिमों के बीच बंटवारे के बीज बोकर प्राप्त की गई। और जो नेता इस चतुर मुस्लिम नीति का शिकार हुए उन्होंने न्याय और निष्पक्षता को ताक पर रख कर मुस्लिम समुदाय के लिए तमाम चुनावी रियायतें उपलब्ध कराईं। इन नेताओं में कट्टर राष्ट्रवादी नेता लोकमान्य तिलक भी शामिल थे। 1916 के लखनऊ समझौते के आधार पर तिलक द्वारा मुस्लिमों के लिए प्राप्त की गई छूट, मुस्लिमों के चुने गए नुमाइंदों की संख्या के अनुपात में कहीं ज्यादा थी। ऐसा लगता है कि मुस्लिम नेतृत्व तिलक जैसे मजबूत नेताओं से भी जैसे चाहे अपनी बात मनवा सकता था। बेशक गांधीजी ने तिलक की अपेक्षा मुस्लिम तुष्टीकरण को कहीं ज्यादा प्रश्रय दिया था। इसके पीछे की भ्रामक धारणा यह थी कि हिंदू-मुस्लिम एकता के बिना भारत की स्वतंत्रता या तो संभव नहीं या अर्थहीन है। यही कारण है कि उग्र इस्लामिक और वहाबी तंजीमों ने हमेशा सावरकर और उनकी विचारधारा को नीचा दिखाने की कोशिश की है। उन्हें अच्छी तरह पता है कि आज हिंदुओं द्वारा अभ्यास में लाया जाने वाला राष्ट्रवाद सोडा बोतल जैसा है। किसी आतंकी हमले या टेलीविजन पर हमारे सैनिकों के शवों को दिखाए जाने पर यह उफान मारता है और ऐसी हरेक घटना के कुछ देर बाद शांत हो जाता है। इसके विपरीत, यदि सावरकर के विशुद्ध राष्ट्रवाद को हिंदुओं में फैला दिया जाए तो बहुसंख्यक समुदाय को विभाजित करने वाली या अपने उद्देश्यों की खातिर राष्ट्रवाद को कमजोर करने वाली ताकतों के पैरोकारों का काम करना लगभग असंभव हो जाएगा। इसीलिए जब भी सावरकर का नाम सामने आता है, ये कूटनीतिकार एकजुट होकर उनकी छवि दागदार करने के लिए पूरे जोर से हमला बोल देते हैं।किसी भी सशक्त विचार में महान शक्ति समाहित होती है। गौतम बुद्ध के निर्वाण के 250 वर्ष बाद कोई भी उनके या उनकी विचारधारा के बारे में नहीं जानता था। ऐसे में सम्राट अशोक ने बौद्ध मत अपनाया और उसे मत प्रचारकों के जरिए भारत की सीमाओं के बाहर फैलाया। और आज बौद्ध मत, जो सावरकर के अनुसार कभी हिंदू धर्म का ही हिस्सा था, विश्व का तीसरा सबसे बड़ा मत बन चुका है।इसी तरह, सावरकर का विशुद्ध राष्ट्रवाद भी कई दशकों से हाशिए पर पड़ा रहा है। लेकिन अब उसके सामने आने का समय आ चुका है, क्योंकि देश विरोधी ताकतें कई रूपों में अपने सिर उठा रही हैं।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read
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Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

गीत :कन्हैया

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

ग़ज़ल

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 1 min read

कविता:कान्हा

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