Aman G Mishra

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ग़ज़ल
किसी की बदमिज़ाजी से मुझे क्या है. किसी की वाहवाही से मुझे क्या है. मैं' जुगनू हूँ मे'रा अपना उजाला है, किसी की रौशनाई से मुझे क्या है. खिलेगा गुल मुहब्बत का मे'रे आँगन, किसी की रातरानी से मुझे क्या है. निगाहें जानती हैं दिल के' अफ़साने, ते'री झूठी कहानी से मुझे क्या है. किसी की दिल-नवाज़ी से मुझे क्या है, किसी की बेवफ़ाई से मुझे क्या है. मुहब्बत का असर है जी रहा हूँ मैं, नहीं तो ज़िंदगानी से मुझे क्या है. सभी कहते मुहब्बत है मुहब्बत है, कहूँ क्या उस दिवानी से मुझे क्या है. -अमन मिश्रा

Paperwiff

by aman

कहते हैं जब व्यक्ति प्रेम में होता है तो वह ग़ज़ल सुनने लगता है या फिर ग़ज़ल कहने लगता है। ऐसी ही मेरी एक ग़ज़ल पेश है

06 Jan, 2021