Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

स्टेशन

रेलवे स्टेशन रेलवे स्टेशन एक ऐसी जगह जहाँ न सिर्फ रेल मिलती है, बल्कि बहुत से मुसाफ़िर अपनी मंजिल, कुछ लोग अपना जीवन,कुछ अपना जीवन साथी पा जाते हैं। हिंदी फिल्मों की तरह कितनी ही प्रेम कहानियाँ रेलवे स्टेशन से शुरू होती हैं। आज उसी रेलवे स्टेशन पर मैं टिकेट बुक कराने के लिए लाइन लगा हुआ हूँ। लाइन इतनी लंबी तो नही है कि खड़े खड़े मेरे घुटनो में दर्द होने लगे,पर इतनी कम भी नही कि फटाफट अपना नम्बर आ जाने में ख़ुशी न हो। एक लड़की मेरे बगल वाली लाइन में खड़ी अपने नम्बर के इन्तजार में है,मेरी तरह ही। पर हिंदुस्तान में बाहर के काम करवाने के लिए जैसे रेलवे टिकट बुक करवाना, गैस सिलेंडर रिफिल करवाना, आदि कामो में लड़कों को ही प्राथमिकता दी जाती है ,इस बजह से लड़कियों की लाइन छोटी है लड़को की अपेक्षा। अब उसका नम्बर भी आने वाला है, यूँ तो लड़की से बात करने का मन तो हो रहा है मेरा, मुझे पसंद भी है। पर बात करने की हिम्मत जुटाने तक में ही बहुत सी कहानियाँ ख़त्म हो जाया करती हैं।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

Ghazal

poetry

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

ग़ज़ल

तुम क्या जानो अँधेरे में साये कैसे दिखते हैं, वे लोग सरसैया जलाकर इबारत लिखते हैं। हाँ है दर्द मेरी हालत में बहुत, तुम भी रोओगे हम लोग तो पत्थरों पर अपना भाग लिखते हैं। हमारा हाल लिखके वक़्त ज़ाया न करो अमन' ये अमीर हैं साहेब ये धूप में कहाँ दिखते हैं। ©aman_g_mishra

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

स्वयं-सुधार

जूझ रहा हूँ, कुछ सूझ रहा हूँ, हर-पल एक पहेली बूझ रहा हूँ। अब हर पहेली का, हल निकाल डालूंगा, अब हार नही मानूंगा।। लड़ता रहा,झगड़ता रहा, खुद से,खुद को मिटाता रहा। अब हरेक गलती को,जड़ से मिटा डालूंगा, अब हार नही मानूंगा।। जमाने की सुनता रहा, खुद को ताने बुनता रहा। अब मैं खुद की सुनूंगा, और यही ठानूंगा, अब हार नही मानूंगा।। गलतियां पे गलतियां करता रहा, अपनी हार पर,खुद को हारता रहा। अब कुछ भी हो,मैं खुद को ही सुधारूँगा, अब हार नही मानूंगा।। अपने वजूद पर तरस आपने लगी थी , आईने के सामने शरम आने लगी थी। अपना वो चेहरा,अब खुद को नही दिखाऊंगा, अब हार नही मानूँगा।। पल -पल की कीमत पहचानूंगा, खुद की ज़ीनत ,अब बचाऊंगा। अब तक जो भी किया,सब भूल कर, एक नई जिंदगी मैं पाऊँगा।। अब हार नही मानूँगा। अब हार नही मानूँगा।। ©aman_g_mishra

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

मन

मन बहुत अधीर है, चंचल हुआ ये नीर है। मन में अमन नही, अमन में मन नही, कैसा ये संयोग है, या कहूँ वियोग है। मन से अमन का... मन को अमन चाहिए, अमन को मन चाहिए, ये कैसा बेजोड़ है, कैसा बेमिसाल है जो प्रेम है , जो नेम है, बिछड़ाव , मन से अमन का... मन मानता नही, अमन की सुनता नही, फिर भी, मन चाहता है अमन, पर अमन से दूर ही , खोया रहता है, जैसे इश्क़ हो गया हो, मन से अमन का... अमन के मन में , अमन नही, जैसे सागर के , तल में जल नही फिर भी अलग है, या एक हैं, अमन भी जानता नही, ये लगाव, मन से अमन का... ©aman_g_mishra

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

बच्चे बन जाएं

आओ कुछ पल बच्चे बन जाएँ, आओ कुछ पल सच्चे बन जाएं। न हो किसी से ईर्ष्या, न हो किसी से जलन, कुछ पल के लिए हम झगड़ें, फिर उसके ही दोस्त बन जाएं। आओ कुछ... दिल में हो एक ज़िद, पाने को पूरी दुनिया हो, खोने का न डर हो, अपनी चीजें हम खुद तोड़ें, और फिर खुद बनाएं। आओ कुछ पल... आँखों में हर पल , एक ख्वाब झलकता हो, मिल जाये तो खुश, नही तो हम रूठ जाएँ, कुछ पल के लिए हम रूठे, फिर हम खुश हो जाएं, आओ कुछ पल... छोटी छोटी खुशियाँ हो, छोटी-छोटी चीजें, इन छोटी चीजों में ही, हमारे सब सपने सच हो जाएं, इन छोटी छोटी खुशियां पा , हम भी खुश होने लग जाएँ। आओ कुछ पल... खेल खेल में हम, सारे काम कर जाएँ, इस तन में कुछ फुर्ती पाएं, सयानो को भी बच्चे बना पाए, हम भी अपना बचपना पाएं। हम भी अपना बचपना पाएं।। आओ कुछ पल.... अपने ख्वाबो में ही अपनी दुनिया हो, नित नए नए सपने सजाएँ, दिल में कितना भी दुःख हो, दो आंसुओ में हम सारा दर्द भूल जाएं। आओ कुछ पल बच्चे बन जाएं। आओ कुछ पल सच्चे बन जाएं।। ©aman_g_mishra

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 22 Jul, 2019 | 1 min read

बारिश: सुख़न और विडम्बना

बारिश एक एहसास है, सुख़न का आभास है। खेतीहर की आस है, अतः दिल के पास है। युवक-युवतियों का सावन, झूलों पर हो ये मन-भावन। नदी, झील,पोखर, झरने, तृप्ति मागता ये प्यासातन। इस सुंदर सुंदर अहसासों में, पंछियों की भींगी साँसो में। वो सुंदर सुख़न नही मिलता, जब पिंजरा उन्हें नही मिलता। जैसे जब मेरे घर की छत, बाबा के हांथो बनी हुई छत। रिसती हुई टपकती हुई छत, माँ ज़मी आसमां हुई छत। मुझे भीगने से बचाने के लिए, अपने लाड को सुलाने के लिए। मुझे लेटा कर एक कोने में, अम्मा लगी रही उचटने में। पानी घर भीतर भर आता, पर लगी रही वो मेरी दाता। मैं भीगा बहुत बुखार हुआ, क्या उसको कुछ नही हुआ। ©aman_g_mishra

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 01 Jul, 2019 | 1 min read

प्यार: पहली नज़र में...❤️

❤️"I hate nothing about you." this poetry is the composition of the feelings of first love❤️

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 25 Jun, 2019 | 1 min read

चाँद : एक विरह

चाँद! चाँद! चाँद! का ख्वाब देखने वालों, चाँद से किसीका घर रोशन नही हो सकता। -Aman G Mishra

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