Akshat
Akshat 23 Jan, 2020 | 1 min read
Quote on Fake People
Pallavi verma
Pallavi verma 27 Dec, 2019 | 1 min read

मधुमती

एक अभिमानी अभिनेत्री की कहानी

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Abhinav
Abhinav 16 Dec, 2019 | 2 mins read

The Puppy

The story says about the pain and harsh life of animals and misbehavior of humans towards them.

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 03 Dec, 2019 | 0 mins read

Jism ki hawas ( Love market )

Love or Hate , its depend on your mate..

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 02 Sep, 2019 | 1 min read

मन के जासूस

सभ्य समाज के लोगों की हर हफ्ते मौत? अब उनकी बारी थी..

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 28 Aug, 2019 | 1 min read

कथानक

पूजनीय दिव्या बरामदे में बैठी अपनी सास गिरिबाला से स्वेटर बुनना सीख रही थी ।एक महीने पहले ही गिरिबाला अपने पति दामोदर के साथ गांव से शहर अपने इकलौते बेटे के पास इलाज करवाने आई थी। पुत्र प्रशासनिक अफसर था ,बड़े से सरकारी आवास में रहता था। चारों तरफ बगीचे के लिए अच्छी खासी जमीन थी। दिव्या ने उसमें माली की मदद से सब्जियां उगाने की कोशिश की थी लेकिन परिणाम से संतुष्ट नहीं थी। दिव्या ने देखा ससुर मिट्टी हाथ में लेकर सूंघ रहे थे, फिर झुककर मिट्टी पर हाथ फेरते हुए कुछ बड़बड़ाने लगे ।उसने आश्चर्य से सास की तरफ देखते हुए कहा ,"पिताजी क्या कर रहे हैं ?" सास हंसते हुए बोली ,"किसान हैं मिट्टी का अवलोकन कर रहे हैं ।कुछ तो कमी है जो सब्जियां बहुत अच्छी नहीं आई।" दिव्या की उत्सुकता शांत नहीं हुई थी," लेकिन वे कुछ बड़बड़ा रहे हैं, कोई मंत्र फूंक रहे हैं क्या ?" गिरीबाला धीरे से बोली ," कुछ नहीं तू नहीं समझेगी।" गिरीबाला को लगता था दिव्या बड़े अफसर की बेटी , शहर में पली-बढ़ी ,कॉन्वेंट में पढ़ी लड़की, उनके तौर-तरीके कभी नहीं समझ सकती ।वह अलग बात थी दिव्या सीखने और जानने की बहुत कोशिश करती थी ।हर बात को लेकर उसके मन में जिज्ञासा रहती थी। गांव में जब भी आती कुछ स्थितियों में परेशानी होती लेकिन जाहिर नहीं होने देती ।दिव्या विनम्रता से बोली," मां बताओ तो शायद समझ आ जाए। गिरिबाला असहजता से बोली ,"तेरे ससुर को लगता है माटी स्वयं बता देती है उसे क्या तकलीफ है ।वे बात करते हैं उससे ।" दिव्या आश्चर्य से बोली ,"क्या ?" गिरीबाला पति को प्रेम से देखते हुए बोली," हां किसान धरती को मां मानता है और यही विश्वास उसे साल दर साल फसल उगाने को प्रेरित करता है ।धरती भी बीजों को अपने भीतर पोषित करती है जब तक अंकुर नहीं फूटते हैं ।यही विश्वास और लगन के कारण मानवता को अन्न प्राप्त होता है ।"फिर दिव्या की तरफ देखते हुए बोली ,"तुम्हें यह सब बातें अजीब लग रही होंगी ।" दिव्या अपनी सास का हाथ अपने हाथ में लेते हुए भावुक स्वर में बोली," नहीं मां अजीब क्यों लगेगा, मेरे लिए खेती-बाड़ी एक मैकेनिकल कार्य था ।आज आपकी बातें सुनकर लगा आपके लिए कितना भावपूर्ण और पूजनीय है।" _____________________ *वेदू* उस वक्त मेरी उम्र 46 की रही होगी । बच्चे बड़े हो चुके थे । पता नहीँ क्यूँ मन में तीव्र इच्छा हुई फिर से किसी बच्चे को गोद में खिलाने की । या यूँ कहिये माँ बनने की। हमारे सामने वाले घर में एक काबुली परिवार रहता था । उनके यहां चार लड़कियों के बाद बेटा पैदा हुआ था । बड़ी लड़की की तो शादी भी हो चुकी थी । वो जर्मनी में रहती थी । बाकी तीन लड़कियां सील्वीना , अलवीरा और आकांक्षा यहीँ रहती थीं । देखने में सारा परिवार बहुत सुँदर था । नवजात बेटे को देखने भी गई थी मैं । उसका नाम वेद था । मैं उसे वेदू कहती थी । पता नहीँ उस बच्चे से कैसा लगाव था मुझे कि बाहर बाल्कनी में मैं जब भी उसे देखती , मुझे बहुत प्यार आता था उसपर । अक्सर उसकी मम्मी उसे कपड़ा बिछा कर बाल्कनी में बिठा देती और घर के कामों में बिज़ी हो जाती। वो अब थोड़ा बड़ा हो गया था लगभग एक साल का । मुझे जब भी देखता तो अपनी मम्मी को आवाज़ दे कर कहता ' मम्मा ' दीदी ' । उसकी मम्मी मुझे दीदी कह कर बुलाती थी , इस लिये उसने भी मुझे दीदी कह कर पुकारना शुरू कर दिया । सुबह उठते ही उसकी बहनें उसे हमारे यहां ले आतीं । मेरे यहां पर ही वो नहाता, दूध पीता और खेलता रहता था । हमारा पूरा परिवार उसे बहुत प्यार करता था lउसके दूसरे जन्मदिन पर हमने उसे शूज़ ले कर दिये थे । उसकी मम्मी बता रहीं थी "दीदी , सारी रात उसने शूज़ उतारने नहीँ दिये , कहता था , मेरी दीदी ने ले कर दिये हैँ , मैं नहीँ उतारूंगा "। उसे गोद में ले कर उसे नहला कर , उसे खिला कर अजीब सी तृप्ति मिलती थी मुझे । डेढ़ साल तक उसका बहुत आना जाना रहा । हम लोग इकठ्ठे जब भी बाहर जाते उसे साथ ले जाते थे । रात को उसके पापा आकर उसे ले जाते थे । फिर हमने अपनी रिहायश फरीदाबाद में शिफ्ट कर ली । उस कॉलोनी में हमारा आना जाना छूट गया । शुरू शुरू में एक दो बार उनका परिवार मिलने आया था । अब तो वो 15 साल का हो गया होगा । पता नहीँ उसे अपनी दीदी याद है या नहीँ । मगर मैं आज़ भी बीते दिनों को बहुत याद करती हूँ । यहां आकर मैंने बिल्ली पालना शुरू कर दिया था 'बुलबुल ' जिसका जिक्र मैंने अपनी कहानी में भी किया था । उपरोक्त दोनों कथानक ही अंत्यंत हृदयस्पर्शी एवं अंतर्मन को भावभीनित करने वाले हैं। अतः समाज इनसे एक विशेष सीख ले सकता है।

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