चुप रहना मेरी कमजोरी नहीं।।

क्या मैं हूं?? या हूं ही नहीं!! क्या मैं जिन्दा हूं?? या मरी ही नहीं!! क्या मैं एक सवाल हूं?? जीसका जवाब है कहीं खो गया!! या मैं एक रूह हूं?? जीसके अस्तित्व की किसी को परवाह नहीं!! क्या मैं हूं!! या फिर हो के भी नहीं हूं!! पर ऐ समाज!! मैं हूं!! मैं यही हूं!! यही हूं!! यही हूं!!

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Sampurna Sharma
Sampurna Sharma 01 Oct, 2020 | 1 min read
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सूना है तेरे होठों को आज भी सील दिया जाता है।

तेरे अंग को एक वस्त्र समझकर उसे आज भी बेचा जाता है।

क्या तू आज भी अपने कदमों को कहीं भटकने से रोकती है??..

क्या आज भी वो बेचैन हो उठते हैं तेरे साड़ी के पल्लू को सरकता देख??..

तू डरी-डरी रेहती होगी अपने हि घर के आंगन में!!

तू सुरक्षित कहा है ये सोच कर हर दिन तील तील मरती होगी।

हर दिन मरने से अच्छा एक दिन में खात्मा हो जाए- ये सोच तेरे जेहेन को हर दिन कुरेदती होगी।।

इस समाज को तो बदल ना सकुगा मैं, पर तू खूद को बदल कर देखेगी क्या??..

अपनी चीखों को अपनी आवाज़ बना कर, तू इस समाज से लड़ेंगी क्या??..

अपनी कलाई को अटूट बनाकर, खुद को टूटने से रोकेगी क्या??..

देख, मैं ईन हैवानों को तुझे हर बार घेरने से ना रोक पाऊगा।

ये तो तेरे ताक में बैठे हर गली कुचे में नजर आएंगे!!

पर क्या तू ईनकी आंखों में आंखें डाल, अपने खौफ को ईनके जीसम में पनपता देखेगी क्या??..

अब बस हुआ- ये खुद को कैह के एक नया दौर जन्म देगी क्या??..

तू जन्नी है ये सब जानते है, क्या तू काली-चंडी रूप भी धरेगी क्या??..

ये जो तुझे दुर्बल जान डरा रहे, उनके घृनीत मानसिकता को मर्दानगी के चोले से नीकाल बाहर कुचलेगी क्या??..


अब बस हुआ सवाल-जवाब!!

अब थोड़ी मेरी भी सुनते जाओ!!

केह दो उन भेड़ीयो को जरा अब भी वक्त है सुधर जाए।

जो मेरी तरफ नीगाह डाली, तो मेरे जन्नी रूप को काली के रूप में बदलता देखेंगे।।

मैं नीरभया नहीं।।

मैं नीरभया नहीं!! जो मेरे मरने पर सोख मनाओगे।।

मैं जीते-जी तुम्हारा काल बनकर, जिन्दगी को मौत से भी बत्तर कर दुगी।।

मुझसे अगर जीने का हक छीना, तो तेरे अस्तित्व को ही मीटा दुंगी!!

तो तेरे अस्तित्व को ही मीटा दुंगी!!

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Sampurna Sharma

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