मजदूर!!

मजदूर हूं पर इन्सानो की गीनती में भी आता हूं।। मुझसे ये बैर रखना क्या लाजमी है??? या फिक्र भरी नजरों से देखने पर दंड दिया जाता है कहीं???

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Sampurna Sharma
Sampurna Sharma 07 Oct, 2020 | 1 min read
#poetrycommunity #poem

तराजू में रख के जब तकदीर तौली मैंने।

एक मुट्ठी मुख और दो मुट्ठी गरीबी ने सारा बैलेंस बीगाड. दिया।

सौदा हुआ। तो जिन्दगी झुलस गई, झोपड़-पटी के मचानों पे।

अगर ना सौदा हुआ होता, तो भी कहा हम मैहफीलो की खीडकियो से झांकते नज़र आते।।

जनाब!! २ रूपए कम पड़ रहें हैं बस, क्या उधार देंगे???...

हाथ जो आगे बढ़ाया उम्मीद भरी निगाहों से, २ रूपए तो ना मीले पर जीलत जरली।।

जनाब!! यbका समान उठा लूं??.. रेलवे के उस पार छोड़ भी आऊंगा।

पैसे की चिंता ना करें। जीतना मन करे उतना दे। यदि फिर ना भी दे तो चलेगा।

हाथ जो आगे बढ़ाया उम्मीद भरी निगाहों से, सामने से अपना सामान थमाते हुए आखीर उसने कहा ही दिया....

""बड़े अच्छे मजदूर जान पड़ते हो""

वैसे मुझे बुला नहीं लगा "मजदूर" सुन कर !!

इन्सानो की गीनती में आता हूं, ये मैं कब का भुल चुका था।।

रेलवे पुल को पार कर के। मैं वापस खाली हाथ लौट आया आज भी।।

आज फिर से, एक मुट्ठी मुख और दो मुट्ठी गरीबी ने साला सारा बैलेंस बीगाड. दिया।।

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Sampurna Sharma

sampurna

Comments

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  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बढिया 🌟🌟

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