दिल

Heart

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rekha jain
rekha jain 18 Jul, 2022 | 1 min read

   दिल 


कभी दिल था मेरा मालामाल

समझ ना पाया समय की चाल

कभी ऊंचा रहता मेरा भाल

फंस गया मैं तो इक जाल

बन गया वो जी का जंजाल

उड़ गए मेरे सारे बाल

था मैं कभी गुरु घंटाल 

आज हो गया मैं फटेहाल 

समय को नहीं दे सकते टाल

जिंदगी हो गई गम से बेहाल

मन में रहा बस एक मलाल

आज बकरा हो रहा हलाल

कैसे सुनाऊं मैं दिल का हाल

लाखों गमों की जली मशाल

फिर भी ना मिली चैन की ढाल

खिंचती रहती मेरी खाल

पिचक गये मेरे पूरे गाल

मैं भी हूं किसी मां का लाल

पूछो मत मुझसे मेरा हाल

जीवन नैया है डूबी इक ताल

आ गया भैया मेरा काल

शरीर हो गया है कंकाल 

नाड़ी की धीमी हो गई ‌ चाल

मुझे क्षमादान दो अभी हाल

जिससे मरण हो खुशहाल।


डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद 

स्वरचित व मौलिक रचना 




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