क्या भारतीय फिल्म उद्योग अनुसरण करने लायक है

मेरे विचार , क्या फिल्म भारतीय फिल्म उद्योग अनुसरण करने लायक है?

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 23 Sep, 2020 | 1 min read



"बाबू मोशाय ! जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए।"


 जब पर्दे पर राजेश खन्ना यह डायलॉग बोलते हैं तो हर व्यक्ति अपनी जिंदगी का लेखा-जोखा शुरू कर देता है कि वाकई उसकी जिंदगी बड़ी है या लम्बी?



उसी प्रकार जब आमिर खान पर्दे पर कहते हैं "म्हारी छोरियां छोरों से कम है कै!"

तो हर भारतीय अपनी बेटियों की तरफ गर्व से देखते हैं।


जब आयुष्मान खुराना बाला फिल्म में कहते हैं कि " बदलना क्यों?" 

 तो हम सब इस बात को मान लेते हैं कि बड़ा, छोटा ,लंबा मोटा, नाटा ,गंजा होना कोई गलत बात नहीं हम जैसे हैं हमें वैसे ही खुद को स्वीकार कर लेना चाहिए, असली फर्क गुणों से होता है।

 

यही असर है भारतीय फिल्मों का! 


फिल्में यकीन दिलाने का नाम है यह जब पर्दे पर चलती है तो इंसान आंखों से देख कर ,दिल और दिमाग को समझा देता है कि यह जो हो रहा है वह असल में घट रहा है।

 इस का असर काफी लंबे समय तक हमारे जहन में रहता है।

 दृश्यम फिल्म बताती है कि जो चीजें हम देखते हैं वह हमारे मस्तिष्क पर ज्यादा असर करती हैं ज्यादा देर तक रहती है।

अब आते हैं असली मुद्दे पर क्या भारतीय फिल्म इंडस्ट्री उद्योग अनुसरण करने लायक है?


तो भारतीय उद्योग का अपना स्वर्णिम इतिहास है व उज्जवल भविष्य है और बीच में यह मटमैला सा का वर्तमान!


जहां, हमारे पुराने फिल्मकारों ने फिल्मों के साथ संस्कारों और नैतिक मूल्यों को भी संभाला, प्रचार किया वही आज यह शुद्ध मनोरंजन व लाभ कमाने का साधन हो गई है।


पर मेरा मानना है की फिल्में अच्छी होती है या बुरी होती है। वैसे ही हर जगह कुछ अच्छे लोग होते हैं कुछ बुरे लोग होते हैं ।हम समाज में कहीं भी देखें चाहे राजनीति में या उद्योग धंधों में हर जगह , हमें अच्छे लोगों के साथ बुरे लोग मिल जाएंगे।

 तो ऐसे में क्या हम पूरी इंडस्ट्री को ही नकार दें?

 

 कुछ बुरे लोगों के कारण यह तो सर्वथा अनुचित है ।

 हां! यह जरूर है कि बुरे लोगों को पहचाने या तो उन्हें सुधारें या दंडित करें ताकि यह गलतियां दोहराई ना जाए।

  

सबसे जरूरी बात हर व्यक्ति की अपनी विवेक बुद्धि होती है और अपनी पसंद होती है इसलिए जरूरी है कि उसकी विवेक बुद्धि को इतना जागृत किया जाए कि वह यह समझ ले कि क्या गलत है और क्या सही , किसका अनुसरण करना है , किसका नहीं?

 

 परिवार व शिक्षा प्रणाली अगर मूल्यों का सही आदान प्रदान करें तो हर जगह लोग अपना काम उच्चतम तरीके से करेंगे फिर वस्तुतः पूरा समाज ही एक आदर्श समाज स्थापित हो सकेगा।

 युं भी अगर हम फिल्म उद्योग पर उंगली उठाते हैं तो 4 उंगलियां हमारी तरफ आती हैं जो कहती हैं कि कहीं ना कहीं गलत समाज में भी हुआ है।

  

 मेरे जैसे फिल्म प्रेमी और फिल्मी गानों के दीवानों के लिए फिल्मों को नकारना बहुत मुश्किल है मैं तो हर शुक्रवार एक अच्छी पारिवारिक, मनोरंजक और कुछ मूल्यों के साथ बढ़िया फिल्म देखने के लिए हमेशा उत्सुक रहती हुं और आगे भी रहना चाहुंगी।

रही बात फिल्मों के अनुसरण करने की तो यह अपनी विवेक बुद्धि से हमें ही निश्चित करना है कि कौन अनुसरण करने लायक है, कौन नहीं?


मौलिक व स्वरचित

अवंती श्रीवास्तव

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Avanti Srivastav

avantisrivastav

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Poonam chourey upadhyay · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut badiya

  • Sampurna Sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    Aptly put together!!! ❤️❤️

  • Avanti Srivastav · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank you

  • Kavita Singh · 3 years ago last edited 3 years ago

    Very nice Avanti ji , bilkul Sahi Likha hai aapne❤️

  • Avanti Srivastav · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks dear ❤️❤️

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत दिलचस्प अंदाज में लिखा गया लेख 👏👏👏👏

  • Avanti Srivastav · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद 😊😊

  • Neha Srivastava · 3 years ago last edited 3 years ago

    Beautiful 💐💐

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut badiya

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