सांसों के लिए

घर के सामानों से कैसे त्वरित ऑक्सीजन बनाई जाए

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 23 Apr, 2021 | 1 min read



" क्या ऑक्सीजन लेवल कम हो गया उनका !" 


" हां! 90 से नीचे जा रहा है और ऑक्सीजन सिलेंडर की बहुत किल्लत है....

कितने हॉस्पिटल में फोन कर थक गया हूं कहीं से भी सिलेंडर उपलब्ध नहीं हो पा रहा अगर जल्दी ही उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं लगाया गया तो उनकी जान को खतरा है! " 

फोन रख बेचैनी से सुरेश इधर-उधर चहल कदमी करने लगा बार-बार कभी व्हाट्सएप कभी फोन लगा कर पूछ रहा था ताकि ऑक्सीजन सिलेंडर की पूर्ति हो सके।


तभी उसके पिता नरेंद्र मिश्रा दाखिल हुए " क्या बात है सुरेश क्यों चिंतित हो"!

" पिताजी वह मेरा दोस्त अनुराग था ना... वह करोना से संक्रमित हो गया उसका ऑक्सीजन लेवल तेजी से नीचे आ रहा है। मैं खुद को बहुत बेबस महसूस कर रहा हूं.... पिताजी कहीं से भी ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम नहीं हो पा रहा मैं क्या करूं? मैं क्या करूं......? पिताजी कुछ समझ में नहीं आ रहा"।


" सुरेश इस वक्त शायद आसमान पर बैठा सर्वशक्तिमान हमारी नादानी पर ऊपर बैठा ठहाके लगा रहा होगा की हे मानव ! मैंने तो भरपूर ऑक्सीजन मुफ्त तुम्हें दे दी थी और ऑक्सीजन बनाने वाला सयंत्र भी यानी हरे -भरे पेड़ पौधे व जंगल.....

तुम खुद ही इनकी नाकदरी कर एक-एक सांस के मोहताज बन बैठे...... " नरेंद्र जी ने कहा


" पिताजी इस वक्त इन सब बातों और पछतावों से कुछ हासिल नहीं होगा अभी तो तुरंत ऑक्सीजन कैसे दी जाए इस बारे में विचार करना चाहिए ....पहले मेरे दोस्त की जान मैं बचा लूं फिर पेड़ पौधे जंगलों को भी लगाते रहेंगे...." सुरेश ने खींझते हुए कहा।


नरेंद्र जी केमिस्ट्री के प्रोफेसर थे और इसलिए रसायनों के बारे में अच्छे से जानते थे ।

अचानक उन्हें एक उपाय सूझा .....

वे अपने पोते निखिल को ले एक छोटे से लैब में जो कि उन्होंने अंडरग्राउंड बनाई थी मैं चले गए।

 " दादा जी हम यहां क्या करने वाले हैं?

 आप फिर कोई मुझे नया प्रयोग करके दिखाएंगे क्या?"

  

" हां बेटा! असल में यह प्रयोग घर में ....घर के सामानों से ऑक्सीजन बनाने का है.... अगर हम ईस्ट में हाइड्रोजन पराक्साइड मिलाते हैं तो वह रसायन क्रिया कर ऑक्सीजन देता है। इस तरह बनी ऑक्सीजन को मैं छोटे छोटे सिलेंडर में भर के मरीजों को त्वरित ऑक्सीजन देने की कोशिश करूंगा। हो सकता हैं ..... ‌मैं तुम्हारे अनुराग अंकल को बचा सकूं"!


"वाह ! दादा जी यह तो बहुत अच्छी बात है अगर हम थोड़ी थोड़ी ऑक्सीजन बनाकर लोगों की मदद कर पाए तो इससे अच्छी तो कोई बात ही नहीं है! चलिए मैं किचन से अभी ईस्ट ले आता हूं मम्मी ब्रेड बनाने में इसका इस्तेमाल करती हैं तो उनके पास जरूर रखी होगी" ।


थोड़ी देर में उन्होंने यह प्रयोग किया और पाया कि ऑक्सीजन बन रही है उसको उन्होंने फिर छोटे-छोटे कंटेनर्स में भरके सील किया और अस्पताल पहुंचा दिया और इस तरह से तुरंत ऑक्सीजन मिलने की वजह से अनुराग की जान बच गई ।


नरेंद्र जी को सबने बहुत धन्यवाद किया व इस अनोखी विधि से ऑक्सीजन बनाने के लिए और कई जान बचाने के लिए उनका मान सम्मान किया गया। ‌जब उन्हें पुरस्कार मिला तो उन्होंने मंच से यह बात सारी दुनिया को समझाइए


 " हम ना भूले कि इस विधि से केवल छोटी अवधि के लिए ऑक्सीजन बन सकती है अगर मानव को अपना अस्तित्व बचाना है तो जंगलों को हमें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है व अपने चारों तरफ पेड़ पौधे ज्यादा से ज्यादा मात्रा में लगाएं।

 पेड़ पौधे हमारे ऐसे साथी हैं जो बिना हमसे कुछ मांगे अपना सर्वस्व हम पर निछावर कर देते हैं हमें बस उन्हें जिंदा रखने की जरूरत है।

 

पेड़ पौधे हैं.... जंगल है... तो ही मानव का अस्तित्व है यह सच हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।" 



स्वरचित व मौलिक

अवंति श्रीवास्तव

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