निशब्द हूं

यह कविता करोना बिमारी से परेशान मन की व्यथा बताती है

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Avanti Srivastav
Avanti Srivastav 14 Dec, 2020 | 1 min read

निशब्द हूं

स्तब्ध हूं

 मैं आज के माहौल से त्रस्त हूं।

 इसे न छूना, उसे ना लगाना हाथ 

 बार बार हाथ धोने से अब मैं पस्त हूं

 

लोगों की भीड़ से आतंकित हूं

 कोई मेहमान घर आ जाएं 

 तो आशंकित हूं

 अपने मित्रों को 

 जादू की झप्पी दूं या सैनेटाइस करूं

 अब इस दुविधा में हूं

 

 बंद हूं चारदीवारी में

 दिल के किवाड़ भी बंद कर लिए

 अपने प्रिय जनों के जाने पर 

 आखिरी बार भी दर्शन नहीं करे

 ऐसे कठोर नियम कानूनों के आगे 

 अब मैं विहृल हूं


कुछ लोग मगर डट गए

 इस नई जंग को लड़ने 

 करोना वॉरियर्स के आगे 

 मैं नतमस्तक हूं।


 स्वरचित व मौलिक

 अवंती श्रीवास्तव

 

 

 

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