अनसुनी याचना

कैमरा में कैद लोगों के पाँवों के छालों ने हृद्य द्रवित कर दिया क्या पंखों के छाले कोई देख पाया जिन्हें कैमरा में नहीं कैद किया जा सकता है?

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 31 May, 2020 | 1 min read

"काश! तुम्हें भी वो भाषा आती जो 'इंसान' कहे जाने वाले समझ पाते। चीख-चीख कर तुम भी अपनी व्यथा कह देते। महानगरों के पाषाण हृदय का आईना जब दुनिया अब देख रही है, तुम्हें तो यह देखने के लिए किसी काल विशेष की प्रतीक्षा भी नहीं करनी पड़ी।" पिंजरे में खुद को कैद सा महसूस करता सम्यक रोज ही उसके हृदय में यही वेदना उठती। पिताजी के तीक्ष्ण स्वर से तन्द्रा टूटी

"सम्यक! बहुत हुआ..क्या टीवी नहीं देखते तुम? कहाँ तो लाखों लोग भूखे - प्यासे अन्न-पानी के तलाश में पैदल निकल पड़े हैं और तुम इतना अन्न रोज ही बालकनी के पास या खिड़की के नीचे फैला देते हो।आज तो सोसाइटी से लिखित में शिकायत भी आ गई है। बंद करो ये बचपना, अब कौन भरेगा हर्जाना?"


"भर दीजिए हर्जाना पापा! मैं भी मजबूर हूं, उड़ते पंखों के छाले किसी कैमरे में नहीं कैद हो सकते ना!"


©सुषमा तिवारी

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