भरण-पोषण

परिवार के लिए कुछ भी करना पड़ता है

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 02 Sep, 2019 | 1 min read

तड़के दुकान खोलते ही सेठ जी पुनीत को जल्दी जल्दी दूध की थैलियां ग्राहक के घर दे आने को बोलते हैं।

"बाबू! हमे भी दे देते दूध थोड़ा..."

"अरे आगे बढ़ो भाई, अभी अपने शिव जी को मैंने चढ़ाया नहीं तुम चले आते हो!" उस मांगने वाले को दुत्कार कर भगा देते हैं।

"शौक बड़े है, दूध पियेंगे...

सेठ जी के पूजा करने जाते ही पुनीत उसकी बोतल में भर देता है थोड़ा दूध," हाँ जल्दी जाओ भईया.. और हाँ ये चोरी नहीं है मेरे चाय के लिए सेठ जी देते हैं उस हिस्से में से दे रहा हूं।"

ग्राहक को दूध देने जाते वक़्त रास्ते में देखता है कि वही आदमी वो दूध भूखी बिल्ली के बच्चे को पीला रहा था।

"बाबू ये ही मेरे बच्चे है, हम ही परिवार है एक दूसरे के "

पुनीत बोला "तुम मत आओ दुकान पर, मैं आते हुए दूध लेते आऊंगा.."

सच ही तो है परिवार के भरण-पोषण के लिए कुछ भी करना पड़ता है, बस इसी राह में एक दूसरे की थोड़ी मदद ही कर देते हैं।

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