अपना बोझ

भीख नहीं मांगेंगे, सम्मान की रोटी खाएंगे

Originally published in hi
Reactions 0
467
Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 19 Aug, 2019 | 0 mins read

स्टेशन पर आ तो गए पर अब ना तो बबुआ का फोन लग रहा है ना कोई आया लेने। क्या करती आशा, अब पतिदेव की तबीयत इतनी खराब थी की बस कह दिया हम आ रहे हैं, तुम्हें तो दस बरस से फुर्सत ना मिली। इलाज कराना था इनका जो, चली आई, अब क्या? आँखों में खुन के आँसू थे, क्या करे शहर में वापस कैसे जाए, भीख माँगना ना पड़े तभी श्यामा ने कहा, "बहन रो मत! हमारे मोहल्ले चल, हम एक दूसरे का सहारा है वहां, ना भीख मांगते हैं ना जिल्लत की रोटी.. मेहनत करके खाएंगे, बहुत बड़ा परिवार है, खुन का नहीं पसीने और प्रेम का रिश्ता समझ। बस चली आई पति को लेकर और श्यामा के कंधे से कंधा मिलाकर ढो लेगी अपने बुढ़ापे का भार वो भी इज़्ज़त से।

0 likes

Published By

Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.