अंग्रेजी स्कूल

गरीबो का हक्क छीनने की तो प्रथा चली आ रही है

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 20 Sep, 2019 | 0 mins read

कपड़े का झोला लिए दौड़ा आया बुधिया "सुन! सूरज अब मैं भी तेरे जैसा बस्ता लेकर अँग्रेजी स्कूल जाऊंगा.."

"अरे वाह, पर ये तो बता तू तो कहता था पैसे नहीं बापू के पास.. अब कहाँ से आए बुधिया, मेरे स्कूल आएगा या कहीं और?" सूरज ने सवालों की झड़ी लगा दी।

"ना भाई, बापू बोले शिक्षा अभियान चल रहा है सरकार द्वारा, अंग्रेजी स्कूल खुला है गरीब के बच्चों के लिए, मुफ़्त किताबें और वर्दी भी मिलेगी।अब मैं भी तेरे कंधे से कंधा मिलाकर चलूंगा दोस्त" बुधिया की खुशी शब्दों में समा ना रही थी।

पर हुआ वही जो इस अवसरवादी समाज में होता है, अधिकार उसे नहीं प्राप्त होता जो उसका अभिलाषी है या ज़रूरत मंद है बल्कि कई लोग होते हैं तिकड़म लगा के छिन ले जाते हैं। सूरज के बापू ने वही किया जब मुफ्त में शिक्षा मिल रही है तो हम क्यूँ पैसे दे और बुधिया जैसे अभावग्रस्त क्या कर लेंगे इन सुविधाओं का।बुधिया के पिता को कह दिया गया की क्या करोगे तुम लोग अंग्रेजी पढ़ कर, हमारे खेतों में काम ही करना है आखिर। और फिर से बुधिया झोला लेकर चल पड़ा अपने पुराने स्कूल की ओर बस सूरज से कंधा मिलाकर चलने का ख्वाब अधूरा रह गया।


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