मेरी परिकथा

मेरी परिकथा

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 12 Sep, 2019 | 1 min read

मैं सपने देखती थी, हाँ मैंने हर एक आम इंसान की तरह कुछ सपने देखे थे। पर समय के साथ साथ हमारे सपनों की परिभाषा उनका अस्तित्व बदलते रहता है। हुआ भी यूँ ही मैंने हर परिस्थिति से समझौता करना सीख लिया था, और एक नया सपना देखती जब पुराना टूट जाता था। फिर एक दिन एहसास हुआ शायद समय का पहिया तेजी से दौड़ रहा है और अब वक़्त आ गया है खुली आंखो से अपने सपनों को जीने का।

मैं कुछ भी क्रिएटिव करना चाहती थी, ऐसा कोई खास मापदंड नहीं था पर हाँ कुछ बनने की भूख जरूर थी और आज भी है।लिखने का प्रयास बचपन से ही था, व्यस्तता की दौड़ में छूट सा गया था। सोशल नेटवर्किंग साइट पहले समय की बर्बादी लगते थे पता नहीं था यही मुझे जीने की नई राह दिखा देंगे। 100 शब्द की कहानी लिखने की शुरुआत जैसे मेरे सपनों के पूरे होने का शुभारंभ था। पहले प्रयास से इतना प्यार मिला जिसकी कल्पना तक नहीं की थी मैंने। सखियों का इतना सहयोग मिला, प्रोत्साहन जिसके बिना शायद वो शुरुआत सम्भव ना थी। मुझे आज भी याद है दोस्त के वो शब्द "दी आप लिखने की शुरुआत फिर से ना करती तो हम एक अच्छा लेखक खो देते"। फिर मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कई मंच पर लिखती हूँ और मेरे प्रयासों की सराहना भी होती है। सह लेखक के रूप में कुछ किताबे भी प्रकाशित हुई है। तो कुछ इस तरह से अपने सपनों को जीना शुरू किया है, उड़ान भरना चाहती हूं अपने ख्वाबों के उन्मुक्त गगन में।और सबसे यही कहूँगी 

# जियोअपनेसपने

धन्यवाद paperwiff मुझे पंख देने के लिए 

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