उड़ने की आशा

दिव्यांगता भी हौसलों को हरा नहीं सकती

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 25 Aug, 2019 | 1 min read

"बैठो बृजेश बाबू! क्या रखा है.. जो खेल कूद के प्रशिक्षक बने हो शहर में?

"अरे काका! बच्चे देश का नाम रोशन करते हैं, देखा नहीं तुमने ख़बरों में अभी हिमा दास, दूती चंद, वैसे ही धावक तैयार कर रहा हूं.. सोनू कहाँ है वैसे?"

आँगन के तरफ इशारा किया बंशीधर ने, बृजेश जी ने देखा सोनू चाॅक से जमीन पर पैरों को आकृति दे रहा था।

"बृजेश बाबू कभी सोनू भी बुधिया सिंह जैसे दौड़ता था, बदनसीब है, बीमारी इसके पैर निगल गई। आप जिन धावकों के बारे में बता रहे थे, ये उन जैसा बनना चाहता है, इन चाॅक के पैरों से।" 

"काका! आंसू मत बहाएं, सोनू में जब इतना हौसला है तो मैं उसे पैरालंपिक के लिए प्रशिक्षित करूंगा,इसकी दिव्यांगता इसकी कमजोरी नहीं ताकत बनेगी, हमारा शरीर हो ना हो मन दृढ़ होना चाहिए।"


-सुषमा तिवारी

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