माँ ही हूँ मैं

माँ ही हूँ मैं, देवकी ना सही यशोदा हूं मैं

Originally published in hi
Reactions 0
1018
Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 11 May, 2020 | 0 mins read

उसका आना मेरे लिए जिंदगी की एक नई शुरुआत थी। "खुशी".. खुशी नाम दिया था मैंने उसे, पता नहीं उसका असली नाम क्या था.. पर जब वो मुझे मिली तो जो एहसास पनपा मन में मैंने उसे वो नाम दे दिया। हम जब जन्म लेते हैं तो एक जीवन शुरू होता है और एक शुरू होता है जब हम किसी को जीवन देते हैं या जीने की वजह बनते हैं। खुशी मेरे लिए वही वजह थी। मैं यानि कि साक्षी रोज बस स्टॉप पर उसी स्पीड से पहुंचती, फिर वहाँ पहली बस का लम्बी लाइन में इंतज़ार करती। जय यानी कि मेरे पति मुझसे कई बार कह चुके थे कि कैब ले लिया करो पर अकेले सफ़र तय करने की बोरियत उठाने को मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी। मेरे घर से बस स्टॉप की दूरी कुछ दूर की थी कि जो मैं रोज पैदल ही तय करती थी। बस स्टॉप के उस पार यानी सड़क के उस तरफ ही मैंने पहली बार उसे देखा था। सात आठ साल की मासूम सी, साँवली सी गहरी आँखों वाली उस बच्ची को। चाय की दुकान पर कांच के ग्लास नन्हें नन्हें हाथो से गंदे पानी में डुबो डुबो कर धोती हुई। जाने क्या था उसमे की मैं रोज समय से पहले बस स्टॉप पहुंच जाती थी। जय ने कई बार छेड़ा भी की बस स्टॉप पर कोई मिल गया क्या? पर मैं हँस कर बात टाल देती क्यूँकी मेरी मार्मिक दार्शनिक बाते वैसे भी मेरे भोले भाले पति के समझ से दूर की बात थी।

उस दिन बारिश जोरों से हो रही थी। और मेरी खुशी नजर नहीं आ रही थी। बेचैनी में मैं सड़क पार कर गई ये बिना सोचे की बस छूट जाएगी। खुशी टपरी के अंदर चाय के ग्लास धो रही थी, उसे देख कर सुकून मिला।

" कहाँ है तुम्हारी माँ?"

" वो मेरी मां नहीं, मालकिन है!"

" ओह! कहाँ है वो?"

आवाज देने पर चाय वाली औरत बाहर आई।

" क्या चाहिए मैडम?"

" शर्म नहीं आती तुम्हें? इतनी छोटी बच्ची से काम करवाती हो.. कानूनन जुर्म तो है ही इंसानियत नहीं तुम लोगों में?"

" कोई छोटी बच्ची नहीं मैडम! ये लोग दिखने में उम्र चोर होते है.. और इंसानियत का ना आप जैसे लोग सिर्फ भाषण देते है..भीख मांगती थी ये, मैं लाई काम देने को और खाना खिलाती, मेरे खुद के चार बच्चे है इसको किधर से बैठा कर खिलाएगी? "

उस औरत की बात से मेरी बोलती बंद हो चुकी थी। सच मैं कौन होती हूं सवाल करने वाली?

बस तो जा चुकी थी। मैंने वापस घर का रास्ता लिया। शाम को जय ऑफिस से आए तो पहले मुझे घर पर देख चौंक पड़े।

" साक्षी! तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? क्या हुआ? फोन क्यूँ नहीं किया? "

" कुछ नहीं जय! सुनो मैंने बहुत सोचा.. मुझे खुशी को घर लाना है!"

"कौन खुशी? और क्या बात कर रही हो.. पूरा बताओ!"

जय को पूरी बात बताने के बाद उसके चेहरे के भाव अलग हो चुके थे।

" साक्षी! तुम शादी के बाद बच्चा नहीं चाहती थी, तुम्हें अपना कॅरियर बनाना था.. अब ये? तुम जानती भी नहीं की ये बच्ची किसकी है, कहाँ से आई है.. "

" जय! हाँ मानती हूं मैंने कहा था पर खुशी को देख कर जो मैं महसूस करती हूं उसका क्या.. और क्या फर्क़ पड़ता है ये कहाँ से आई है.. सड़क पर भीख मांगती है बचपन से उसे याद भी नहीं माँ बाप कौन है.. या तो कोई शराबी बेच गया होगा.. या किसी के नाजायज संबंध का अनचाहा परिणाम.. बेटे की चाहत में लंबी लाइन की एक कड़ी या किसी गरीब की भूख का त्याग.. कोई भी हो पर अब ये मेरी ममता की हकदार है, हम कानूनी प्रक्रिया से गुजर कर घर लाएंगे "

" ठीक है साक्षी! जब सोच लिया है तो मैं साथ हूं.. बस तुम तैयार हो पहली बार इस तरह से मां बनने के लिये? "

" हाँ जय! मुझे खुशी की यशोदा माँ बनना है "

फिर हम खुशी को घर ले आए। उसे नई जिंदगी, अच्छी शिक्षा और आगे बढ़ने का अवसर और मुझे ममता लुटाने और जिम्मेदारी निभाने का अवसर। मैं साक्षी खुश हूं और खुशनसीब हूं कि जय जैसा जीवनसाथी मिला जिसने मेरे निर्णय का मान रखा पर खुशी जैसे और कई बच्चियां इन्तेजार कर रही है अपनी यशोदा माँ का।

0 likes

Published By

Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.