जल ही जीवन है

जल ही जीवन है, जीवन के लिए और कितना संघर्ष?

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 29 Mar, 2020 | 0 mins read

"तो बच्चों आज हम पढ़ेंगे पाठ" जल ही जीवन है ".. रघु! तेरी बहन मुनिया नहीं आई आज कक्षा में, पाठ छुट जाएगा तो कैसे चलेगा बता जरा?" मास्टर जी की उंगलिया बोर्ड पर आँखे रघु पर टिकी थी।

" मास्टर जी! आज सोमवार है और आज मोहल्ले में हफ्ते में एक बार टैंकर आता है तो मुनिया गई हमारे लिए जीवन जुटाने और पाठ सीखने का काम मैं कर रहा हूं " रघु ने मुस्कुराते हुए कहा।

मास्टर जी की नज़रे घूम गई और उंगलियां बोर्ड पर चलने लगी। भला जल संग्रहण पाठ में जीवन पूरक शब्दों का क्या औचित्य है। क्या ज़रूरी हो सकता है सांसो का इतना चलना की जल की उपयोगिता का पाठ सीखने से वंचित रह गई। या क्रूर वास्तविकता ने ईन को सारे पाठ स्वयं पढ़ा दिए हैं और सीखने की ज़रूरत अब हमे है? मुनिया कक्षा में बैठ पाठ पढ़ सके इसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी सभ्य समाज को लेनी ही होगी। कब तक जीवन के लिए ये लाइन में खड़े होंगे?

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