किसान की मां

हे अन्नदाता! तुम मत रोओ.. अब इनकी बारी है..

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 1130
Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 30 Dec, 2019 | 0 mins read

"क्यूँ रो रहे हो?.. इतना दुःख भला किस बात का?"

"रोऊँ नहीं तो क्या करूं?.. कभी सोचा ना था माँ कि परिवार के भूख को शांत करने के लिए तुम्हें ही कुर्बान कर दूँगा"

"तो माँ का क्या कर्तव्य है बताओ? त्याग और समर्पण का दूसरा नाम ही माँ है ना..दुःख तो इस बात का है की अब मैं अपने परिवार का भरण नहीं कर पा रहीं हूं, वर्ना आज यह नौबत नही आती।"

" फिर भी कितने सलोने स्वप्न सजाये मैंने, धूप में झुलसकर मेघ की बाट देखता रहा.. पर ये मेघ भी निष्ठुर हो गए हैं, सरकारें शून्य हो गई हैं.. कर्ज पर कर्ज चढ़ा हुआ है.. निराश हो मैं मृत्य को भी स्वीकार लूँ पर उससे भी तो परिवार का पेट ना भर पाएगा ना.. मैं मजबूर हूं ,वर्ना माँ का सौदा कौन करता भला?"

"देखो तुम किसान हो, अन्नदाता हो अगर ये बात इन्हें नहीं समझ आ रही है तो तुम आंसू क्यूँ बहाते हो? मैं मां भी तो तुमसे ही कहलाती थी, मेरी छाती पर अगर ये लोग कंक्रीट के जंगल बना कर तुम्हारे परिवार की भूख शांत करते हैं तो सोचो मत! अब ये सोचे की इनके परिवार का पेट कौन भरेगा? चलो देखते हैं कब तक शून्य बैठती है बाकी की दुनिया अन्नदाता से उसकी कर्मभूमि छिन कर।"

किसान हल उठा कर अपनी मां यानी अपने खेत को प्रणाम कर चल दिया अपने हल लेकर, कुछ काग़ज़ी कारवाई बाकी थी अभी।

0 likes

Support Sushma Tiwari

Please login to support the author.

Published By

Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.