ये वादा रहा!

जीवन के कितने ही उतार चढ़ाव आए,लेकिन सच्चा साथी ही जीवन को पूर्ण करता है ।कोई और नहीं।

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Vinita Tomar
Vinita Tomar 07 Mar, 2021 | 1 min read

मनोज और देवयानी एक कुशल दंपति थे।कई वर्षो से साथ थे लेकिन भरेपूरे परिवार में उन्हें सिर्फ एक कमी थी,वो थी संतान की। उनके कोई संतान नहीं हुई थी।

कितने डॉक्टरों को दिखाया,इलाज भी हुआ बस संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। देवयानी का मां बनने का सपना उसकी कसक साफ दिखाई देती थी सबको।

अब उसने जैसे समझौता कर लिया था जीवन से।अपने आस पास के बच्चो के साथ समय बिता लेती।पास में एक अनाथ आश्रम था वहां अक्सर अपने पति मनोज के साथ जाती। वहां ईश्वर की इस सुंदर कृति को देख मन फफक फफक रो उठता।लेकिन मन को सम्हाल कर उन बच्चो को खूब प्रेम दे, अपने घर वापस आ जाती।

देवयानी को ये दुख भी था कि अपने पति को संतान सुख से वंचित रखा है उसने। कई बार अपने पति को कहती," सुनो जी, आप दूसरा विवाह कर लीजिए"।

इस बात को सुन मनोज कहता,"इतनी जल्दी अलग होना चाहती हो मुझसे क्या।जो तुमने दिया हैं उसका कोई मोल नहीं। जब तक जिएंगे साथ रहेंगे,ये वादा रहा"।

आपस का प्रेम ही तो था जो उन दोनो को इस कमी के बावजूद भी साथ रखें था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक हादसे में मनोज शिकार हो गया। उसको बचा तो लिया गया लेकिन उसके शरीर का निचला हिस्सा खराब हो गया। ना वो चल सकता था ना ही खुद से उठ बैठ सकता था। अब वो व्हील चेयर के सहारे था। देवयानी को ये सब देख बेहद दुख हुआ। बोली," हे ईश्वर, पहले से ही इतना दुख था जो ये और दे दिया।मनोज को चमत्कार कर के ठीक कर दो।"

देवयानी अब उसकी पत्नी,सेविका,डॉक्टर सब बन गई थी। इतनी कुशलता से उसका ध्यान रखती कि हर कोई उसकी तारीफ करता। धीरे धीरे मनोज ठीक होने लगा।थोड़ा आयुर्वेद,थोड़ा एक्सरसाइज, सब देवयानी के कारण था जो वो थोड़ा थोड़ा पैरो को हिला पाता था। देवयानी को उस समय ये एहसास हुआ कि,बच्चा ना होना उसके जीवन को अपूर्ण नहीं करता,अपितु मनोज का ना होना उसे अपूर्ण करता है। उसकी सोच अपने जीवन के लिए बदल गई थी।

ये बात उसने मनोज से भी कहीं और निश्चय कर के एक ट्रस्ट बनाया जिसके जरिए हर वर्ष कुछ अनाथ बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने लगे। धीरे धीरे कई लोग उनके इस ट्रस्ट से जुड़ गए और उन्होंने मिल कर एक अनाथ आश्रम की शुरुआत की, जो अनाथ आश्रम नहीं था, उनका घर था।

दोनो पति,पत्नी ने एक दूसरे के साथ रहने का वादा ही महत्त्वपूर्ण समझा।

जीवन को खुल कर जीने की हर कोशिश करते ताकि मरने के बाद कोई दुख ना रह जाए, कोई वादा अपूर्ण ना रह जाए।

ये वादा रहा!

कैसी लगी मेरी कहानी जरूर बताएं।

धन्यवाद।

लेखिका - विनीता सिंह तोमर।




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Vinita Tomar

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