मजदूर का दर्द

मजदूर अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सपना देखता हुआ

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Vineeta Dhiman
Vineeta Dhiman 09 Jun, 2020 | 1 min read
Child future Self help Labour Work

दिनभर धूप में तपता हुआ

पसीने की बूंदों से तर हुआ

अब देह में शक्ति नही शेष

फिर भी चल रहा नंगे पैर

मन मे लिए एक प्यास

पता है उसे भी अगर

न काम किया तो 

पैसे नही आयेंगे।

क्या

आज फिर

घर मे बच्चे 

भूखे ही रह जाएंगे।

खुद रोटी न खा सकूं 

तो ठीक है।

लेकिन

बच्चों को भूखा न 

सोने दूंगा।

इस उम्मीद में चल पड़ा

फिर मजदूर

बच्चों के

सुनहरे सपनो को

पंख मैं ही दूंगा।

माना 

मजदूर हूँ 

अपना पसीना बहाकर 

जो मैं न कर सका 

अपने लिए

वो सब अपनो के लिए

करूंगा।

मजदूर के बच्चे 

अब मजदूरी नही करेंगे।

जी जान से पढ़ाई कर

खुद का महल

खड़ा करेंगे।

देख लेना तुम भी 

मेरे हाथों की उन 

लकीरों को 

जो अब नया रूप ले रही है।

विनीता धीमान


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