इक्का दुक्का रोशनी आती है औघढ़ की झोली से काटो तो जिसे खून नहीं ऐसा अक्सर हो जाती हूं कृपा पात्र कब तक बनूँगी, अब कांटे से कांटा निका लूँगी
अवसाद और निराशा का मै चोला बदलूँगी
सबकी दृष्टि दया दृष्टि चाहना बंद करूंगी
हृदय का शूल न बनकर अब मै
हृदय सम्राज्ञी बनऊंगी, अब अपनी काया पलट करूंगी
मुंह में दांत नहीं है फिर भी मन की प्यास बड़ी है डोलती नैया थी तब मेरे घट में राम बसे हैं
आंखें बंद होने से पहले मुझको आंखों में घर करना है बस अपना कायापलट करना है
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