मेरे बहके ख्याल

शायरी

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 24 Jan, 2021 | 0 mins read

कतरा कतरा पिघलती शाम से बस एक टुकड़ा जिंदगी मिली है

जो बातें रह गई कुछ अनकही कुछ अनसुनी

अब मां के मखमली आंचल से नई मंजिलों की तरफ बढ़ने की दौड़

शायद यह तपस्या लाए नई भोर

दर्द की एक नदी जो थमी सी है उसको मिल जाए कोई किनारा और जो अब तक छुपा था हुनर सामने आए हमारा

सप्त अश्व पर होकर सवार इस आंगन से जाएं सपनों के इंद्रधनुष पा जाएं

मेरे घरौंदे में रखे तुम्हारी खुशबू से

रचे बसे खत कुछ तजुर्बा ही देंगे

नए नए चेहरों को मैं भी दर्पण दिखलाऊँ, दहलीज से निकली हूं

जीवन के इस मोड पर मुसाफिर बन कुछ अच्छा कर जाऊं

मेरे बहके हुए से ख्याल आप सबके सम्मुख रख जाऊं

वर्षा शर्मा दिल्ली

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