पेट क्यों दिया या नजर क्यों दी?

लोगों की मानसिक विकृति को दर्शाती एक लघु कथा

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 27 Oct, 2020 | 1 min read
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सुनीता अपनी जिंदगी में और छोटे से परिवार में खुश थी| लेकिन कहते हैं ना कि...खुशी को भी किसी की नजर लग जाती है| एकमात्र कमाने वाला  पति || वह रोड एक्सीडेंट में चल बसा| दो प्यारी सी बेटियों की मां थी |कुछ दिन सब सही रहा| लेकिन धीरे-धीरे जब जिंदगी अपने रूटीन में आने लगी| तो पैसों की कमी खलने लगी |लव मैरिज की थी मां बाप के पास भी नहीं जा सकती थी| पति ने भी बहुत प्यार दिया कभी नौकरी करने की जरूरत ही नहीं पड़ी| लेकिन पति का यही सोचना कि खाओ और कमाओ जोड़ने में क्या रखा है?????इसी वजह से आज सुनीता सड़क पर आ गई है| तभी उसने देखा की बड़ी बेटी एक खाने का थाल लेकर आई है| उसने पूछा कि कहां से लाई ???तो वह बोली कि मां मुझे दुकान वाले अंकल ने दिया है और कह रहे थे कि तुम मेरे पास आओ मैं तुम्हें खाना दूंगा!!!उन्होंने मुझे खाना दिया है और शाम को फिर बुलाया है| चलो हम खाना खाते हैं| बहुत भूख लगी है| कैसे समझाती ???कि खाने के बदले यह दुकानदार क्या चाहता है ???खड़ी हुई अपने लिए नहीं तो अपनी बेटियों के पेट के लिए काम करना होगा| एक मां अपने बच्चों को भूखा तड़पते हुए नहीं देख सकती |उस खाने को दुकानदार के सामने फेंक कर चल दी| चाहे मजदूरी करने पड़े लेकिन इन दुष्ट नजरों को कभी भी अपना और अपनी  बेटियों का पेट भरने का जरिया नहीं बना पाऊंगी | छोटी बिटिया बोलती है कि", मां तुम परेशान क्यों हो???हमें भूख नहीं लगती| लेकिन कुछ पेट में अजीब होता है जब भूख लगती है|| मां भगवान ने हमें पेट क्यों दिया,,????सुनीता , बिटिया को गले लगाकर कशमकश में सोचती है!!कि तुम्हें तो पेट भगवान ने शरीर चलाने के लिए दिया है || किंतु दुष्ट लोगों को गंदी नजर क्यों दी|

आज के समाज की बहुत बड़ी विसंगति है| जहां एक बच्चे से लेकर बड़ा तक कोई सेफ नहीं है| बच्चियों को एक सही माहौल मिले इसके लिए सभी को कुछ ना कुछ जतन करना होगा|


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Varsha Sharma

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