शीशे के घरौंदे है

आज भी कई जगह नारी को कुछ मान्यताओं के चलते कैद किया जाता है, उसी दुखी नारी के दिल से निकली आवाज

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 25 Feb, 2021 | 1 min read
#1000poems


 

दिल पर पड़े निशान


ना कोई मार का निशान

 ना मेरे गाल पर कोई छाप

 

हाँ शीशे की बड़ी हवेली में 

रहने वाली मै

 हिंसा का शिकार होती हूँ

 कुछ निशान तो मेकअप से छुपा लेती हूं

 और जो दिल पर निशान पड़ते हैं


 उन्हें एक मुस्कुराहट से ढक लेते हैं 

क्योंकि  रसूख दारो के घरों में

औरतों को इज्जत देते हैं 

उसी इज्जत के खातिर बस चुप्पी लेते हैं

बस. 

अब तोड़ दूंगी 

क्योंकि देखी है मैंने

 नन्ही चिड़िया जो पिंजरे से 

अभी आजाद हुई थी 

तुमने तो मुझे शीशे  

के घर में रख लिया

 लेकिन मैं तुम्हें अपनी कोख में 

रखने से इंकार करती हूं

वर्षा शर्मा

दिल्ली

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Varsha Sharma

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