नादान बच्चे को समझाती हुई मां

बच्चे को मां बात का मर्म समझाती है

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 04 Sep, 2021 | 1 min read




बच्चा स्कूल जाने में कर रहा था आनाकानी

मां प्यार से बोली,बताओ तो सही अपनी परेशानी

बच्चे ने अपनी परेशानी का कुछ यूं किया बयान

मास्टर जी डराते हैं स्केल से, पकड़ लेते हैं सबके सामने मेरा कान

मां बोली जानती हूं तुमको, हो तुम बहुत शैतान

मास्टर जी की बातों पर ना देते होंगे तुम ध्यान

दंड, प्रोत्साहन, प्यार ,दुलार तो हैं शिक्षक के हथियार

इनकी मदद से ही दे पाता है वो शिष्य को सही आकार

छीन लिया पर अब उससे, हल्के दंड का भी अधिकार

हो रहे बच्चे इसीलिए निरंकुश, अनुशासनहीन पर शिक्षक है लाचार

मां बोली, हमारे ज़माने में तो शिक्षक खींच खींचकर लंबे कर देते थे कान

पड़ता था जब डंडा हथेलियों पर, लाल-लाल बन जाते थे वहां निशान

कभी मुर्गा, कभी उठक बैठक, कभी होना पड़ता था खड़ा पकड़कर कान

ठिकाने आ जाते थे होश उद्दंडियों के भी, पढ़ते थे वो फिर लगाकर ध्यान

शिक्षक संवारकर, निखारकर करता था चुनौतियों के लिए तैयार

वर्तमान के साथ-साथ भविष्य सुनहरा बनाने से था उसे सरोकार

तुम छोटे हो अभी, समझते नहीं अपना नफा नुकसान 

वरना इतनी सी बात पर होते नहीं तुम परेशान

सुन बात मां की, बोला बच्चा, करता हूं अब स्कूल चलने की तैयारी

आ गई समझ मुझे, है शिक्षक ही जो सोचता है भले की हमारी


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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Vandana Bhatnagar

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