अभिभावक की भूमिका

A heart touching story about the bond between a brother and sister

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 26 Nov, 2020 | 1 min read
Family Brother and sister

दीदी, आज मैं देर से आऊंगा आज फैस्ट है हमारे यहां आप खाना खा लेना कहीं मेरे इंतजार में बैठी रहें।अंशु कुछ कहती इतने में दीपू गेट से बाहर भी निकल गया शायद आज बहुत जल्दी में था। अंशु भी गेट बंद करके लाॅन में ही गुनगुनी धूप में आंखें मूंद कर बैठ गई ।

आंखें बंद करते ही उसे पता नहीं क्यों अपने अतीत की बातें याद आने लगी ।वह सोचने लगी कि उनका हंसता खेलता चार जनों का परिवार था पर पता नहीं किस की बुरी नजर लग गई हमारे परिवार को ।मम्मी पापा दोनों एक शादी में सम्मिलित होने के लिए कानपुर जा रहे थे लेकिन रास्ते में ट्रेन का भयंकर एक्सीडेंट हो गया ट्रेन के चार डिब्बे पटरी से उतर गए थे ।जब ट्रेन के एक्सीडेंट की सूचना मिली तो हम ताऊ जी के साथ वहां पहुंच गए थे वहां का मंजर देखा नहीं जा रहा था हर तरफ चीख पुकार सुनाई दे रही थी लोग बदहवास से इधर उधर अपने परिवारी जनों को ढूंढ रहे थे जिस डिब्बे में मम्मी पापा का रिजर्वेशन था उसका कोई भी यात्री नहीं बचा था ।

मम्मी पापा की क्षत-विक्षत लाशें देखकर मैं तो बेहोश ही हो गई थी ।ताऊजी ही सारी कार्यवाही पूरी कराकर लाशें लेकर घर लौटे थे ।एक ही झटके में भगवान ने मम्मी पापा दोनों को हमसे छीन लिया था ।दीपू तो काफी छोटा था पर उस छोटी उम्र में सबसे भारी काम मम्मी पापा का अंतिम संस्कार करना पड़ा ।चौथे दिन ही शांति हवन के बाद सब रिश्तेदार घर चले गए कोई भी हमारी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था। उस समय समझ में आया कि मां-बाप की छत्रछाया क्या होती है ।पैसे की तो कोई कमी नहीं थी पापा बहुत पैसे छोड़ गए थे ।

मेरा दिल्ली आईआईटी में यह प्रथम वर्ष था ।मेरे आई आई टी में सिलेक्ट होने पर मम्मी पापा दोनों ही कितना खुश थे ।पूरे अपार्टमेंट में मिठाई बांटी थी उन्होंने। कहते थे बस दीपू भी इसी तरह आईआईटी में सिलेक्ट हो जाए तो उनकी जिंदगी सफल हो जाएगी ।मम्मी पापा के जाने से मेरा बचपना भी उनके साथ ही चला गया। अब मैं दीपू को मम्मी पापा का भी प्यार देने की कोशिश करती अब मैं दीपू की अभिभावक बन गई थी ।उस साल वो दसवीं कक्षा में था और उसका पहला बोर्ड का एग्जाम था। अपनी पढ़ाई के साथ साथ मैं उसकी पढ़ाई पर भी बहुत ध्यान देती थी। उसे कभी किसी चीज की परेशानी नहीं होने दी।

धीरे-धीरे समय बीतता रहा और मेरा भी बी.टेक पूरा हो गया और दीपू का भी आईआईटी दिल्ली में सिलेक्शन हो गया ।दीपू के आई आई टी में सिलेक्ट होने पर ऐसा लगा जैसे मम्मी पापा का कोई सपना पूरा हुआ हो ।बी टेक करते ही मेरी पहली जॉब मुंबई में लगी लेकिन मैं दीपू को अकेला छोड़ कर जाने को तैयार नहीं थी मुझे ऐसा लगता था कि वह मेरे बिना सुरक्षित नहीं रहेगा। मन में कहीं यह भी डर रहता था कि कहीं मैं इसे भी ना खो दूं इसलिए हर वक्त उसके साथ साए की तरह रहना चाहती थी। अतः मैंने दिल्ली में ही जॉब ढूंढ ली ।मुझे भी जॉब करते करते कई साल हो गए और अब दीपू भी दिल्ली आईआईटी में प्रोफेसर नियुक्त हो गया था ।

मोबाइल की घंटी बजने से अंशु का ध्यान भंग हुआ और वो वहां से उठकर अंदर मोबाइल लेने चली गई उसके कलीग मोहित का फोन था और आज उसके ना आने की वजह पूछ रहा था ।अंशु ने मोहित को सही बात नहीं बताई कि वह अपने भाई की शादी उसकी पसंद की लड़की से तय करने जा रही है और आज शाम को ही उसके पेरेंट्स आने वाले हैं इसलिए छुट्टी ले रखी है ,बात बना कर बोली बस यूं ही मन नहीं था आने का। मोहित ने उसे यह भी बताया कि उसे बेंगलुरु में अच्छी जॉब मिल गई है और 1 महीने बाद यहां से चला जाएगा यह सुनकर अंशु को बुरा लगा।

अंशु जानती थी कि मोहित उसे पसंद करता है कई बार शादी का प्रस्ताव भी रख चुका है ।वह खुद भी उसे पसंद करती थी लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी भी बखूबी समझती थी इसलिए उसने अपने कदम उस दिशा में कभी बढ़ाये ही नहीं ।मोहित से बात करने के बाद अंशु ने घर का काम निपटाया और कुछ जरूरी सामान लेने बाजार चली गई ।शाम को अपर्णा के पेरेंट्स अपने तय टाइम पर आ गए थे उन्हें तो शादी की बहुत जल्दी थी क्योंकि उनका बेटा कनाडा से 1 महीने की छुट्टी लेकर आया हुआ था और इसी बीच वो शादी कर देना चाहते थे ।अंशु बोली इतनी जल्दी सब कैसे मैनेज हो पाएगा मैं तो दीपू की शादी बड़ी धूमधाम से करना चाहती हूं उसे ऐसा ना लगे कि मम्मी पापा नहीं है तो दीदी ने ऐसे ही बेकार टाल दिया ।अंशु की बात सुनकर दीपू बोला ऐसी बात कैसे कर सकती हो आप आज मैं जो कुछ भी हूं आप ही की वजह से हूं ।

अंशु बोली अच्छा चल जरा पंडित जी को फोन करके यहां बुला ले ताकि वह अच्छा सा मुहूर्त निकाल दें।थोड़ी देर बाद पंडित जी ने आकर 10 दिन बाद का मुहूर्त निकाल दिया अंशु बोली इतने कम समय में कैसे हो पाएगा सब। फिर अंशु अपर्णा की मम्मी से बोली कि आप हमारी तरफ से अपर्णा को उसकी पसंद के कपड़े एवं गहने दिला देना पैसे मैं आपके अकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगी ।बैंकट हॉल ,होटल में लोगोंको ठहराने का काम ,भाजी आदि का काम दीपू खुद देख लेगा आपके लिए तो यह नया शहर है दिक्कत होगी ।सब बातें तय हो जाने के बाद खा पीकर अपर्णा के पेरेंट्स हंसी खुशी चले गए ।देखते ही देखते शादी का दिन भी आ गया शादी वाले दिन गिने-चुने रिश्तेदार ही आए थे ।दीपू एवं अंशु के मिलने वाले ही ज्यादा थे ।दीपू के दोस्तों की मंडली ने तो खूब धूम मचा रखी थी ।मोहित भी शादी में टाइम से काफी पहले ही पहुंच गया था दीपू भी मोहित से काफी घुट घुट कर बातें कर रहा था जैसे बहुत पुरानी जान-पहचान हो ।

शादी के बाद जब मोहित वहां से चलने लगा तो अंशु से बोला अब तो अपने बारे में भी सोचो अंशु बोली अभी तो इसकी शादी ही हुई है अभी तो इसकी गृहस्थी भी जमानी है अपने बारे में मैं भला कैसे सोच सकती हूं ऐसा कहकर अंशु विदाई की रस्म पूरी कराने में लग गई ।अपर्णा के घर आते ही अंशु ने ही उसका आरता किया एवं बहुत सुंदर गोल्ड के ब्रेसलेट भी दिये। दोपहर तक सभी रिश्तेदार भी विदा हो गए। अगले दिन दीपू एवं अपर्णा को भी घूमने के लिए निकलना था उनका पूरा 21 दिन का प्रोग्राम था वह दोनों घूमने चले गए और अंशु फिर अपनी पुरानी दिनचर्या में व्यस्त हो गई ।

21 दिन बाद जब दीपू एवं अपर्णा घर लौटे तो बहुत खुश थे उन्हें खुश देखकर अंशु भी खुश थी। अब दीपू एवं अपर्णा तो अपनी जिंदगी मजे में जी रहे थे पर अंशु ने अभिभावक की जिम्मेदारी ओढ़कर सब सुख ताक पर रख रखे थे ।वह दोनों आए दिन कभी दोस्तों के यहां ,कभी किसी पार्टी में ,कभी कहीं घूमने जाते रहते और अंशु घर में अकेली रहती लेकिन इस बात को लेकर वो कभी परेशान नहीं होती उसे तो बस दीपू की खुशी चाहिए थी ।इसी तरह कई महीने बीत गए मोहित भी बेंगलुरु चला गया अब अंशु का भी मन उस कंपनी में काम करने में नहीं लग रहा था ।उसने अब कई जगह इंटरव्यू देना शुरू कर दिया अनुभव तो था ही उसके पास पर अधिकतर नौकरी उसे पुणे बैंगलोर या मुंबई की ही मिलती पर दीपू से दूर ना जाने के चक्कर में वह उन्हें छोड़ देती ।इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे ।एक दिन शाम को जब अंशु अपनी कंपनी से वापिस आई तो उसे अपर्णा का मूड थोड़ा उखड़ा उखड़ा लगा उसने तुरंत ही पूछ लिया तुम्हारा दीपू से झगड़ा हुआ क्या? पर अपर्णा चुप ही रही और रात के खाने पर भी अनमनी सी रही।

अब अंशु से रहा न गया और दीपू से बोली ऐसी क्या बात हो गई जो अपर्णा नाराज है तबीयत तो ठीक है ना इसकी। दीपू बोला ऐसी कोई बात नहीं है सब ठीक है ।फिर खाना खा कर अंशु अपने कमरे में चली आई ।उसी दिन रात को दीपू के कमरे से जोर जोर से आवाज आ रही थी अंशु ने अपने कमरे से बाहर निकल कर सुना तो दीपू कह रहा था कि दीदी होती ही कौन है हमारे बीच में बोलने वाली यह हमारी जिंदगी है इसमें मुझे किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं ।ऐसा सुनकर अंशु को बहुत बड़ा झटका लगा उसका तो दिल ही टूट गया वह सोचने लगी जिसे मैं अपनी दुनिया समझती हूं वह मेरे बारे में ऐसा सोचता है कि मैं होती कौन हूं और फिर सारी रात वो बचपन से लेकर अब तक की घटनाएं याद करके दुखी होती रही ।फिर अंशु ने निर्णय लिया कि वह अब यहां नहीं रहेगी और बैंगलोर वाली जॉब के लिए हां कह देगी ।अगले दिन ही उसने बेंगलुरु जाने के लिए पैकिंग शुरू कर दी ।उसने मोहित को फोन करके अपने लिए रूम देखकर रखने को भी कह दिया।

अंशु को सामान पैक करते देख दीपू बोला दीदी कहां की तैयारी हो रही है तो अंशु ने उसे बेंगलुरु जाने की सूचना दी यह सुनकर दीपू बोला दीदी हम आपके बिना कैसे रहेंगे यह सुनकर अंशु बोली अब तक मैं भी इसी भ्रम में जी रही थी कि मेरे बिना तू कैसे रहेगा लेकिन अब तो तू बहुत बड़ा हो गया है बड़ी-बड़ी बातें करनी सीख गया है और अब तेरा ख्याल रखने वाली बीवी भी आ गई है अब मेरी जरूरत भी क्या ।मुझे भी किसी की जिंदगी में दखलअंदाजी करने का कोई शौक नहीं है ।अंशु ने बताया कि उसकी कल सुबह की ही फ्लाइट है 10:00 बजे तक वो बैंगलुरु पहुंच जाएगी ।अपर्णा और दीपू एक दूसरे को देख आंखों आंखों में मुस्कुरा उठे क्योंकि उनके मन की जो हो रही थी ।अगले दिन दीपू एवं अपर्णा अंशु को एयरपोर्ट तक छोड़ने गए ।दीपू एवं अपर्णा से विदा लेते समय अंशु की आंखों में आंसू थे लेकिन वो उन्हें छिपा गई और तेज कदमों से बोर्डिंग पास बनवाने के लिए आगे बढ़ गई ।

फ्लाइट सही समय पर थी और ठीक 10:00 बजे बैंगलोर पहुंच गई थी जहां उसे लेने मोहित आया हुआ था। मोहित ने देखा अंशु बहुत उदास थी वह कुछ बोल भी नहीं रही थी शायद पहली बार दीपू से अलग रहने आई थी इसका असर हो ।तभी दीपू का फोन आया दीपू का फोन देख कर अंशु चहक गई लेकिन दो पल में ही उसके चेहरे के भाव बदल गए। दीपू ने अंशु से पूछा कोई दिक्कत तो नहीं हुई सफर में ठीक से पहुंच गई ना अंशु बोली दीपू तुझे फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है मैं अपना ध्यान खुद रख सकती हूं और यह कहकर फोन काट दिया। मोहित ने अंशु को इतना उदास पहले कभी नहीं देखा था उसने अंशु का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा तुम्हें मेरे रहते उदास होने की कोई जरूरत नहीं है किसी को तुम्हारी जरूरत हो या ना हो पर मुझे तुम्हारे साथ की बहुत जरूरत है। मैं भी अकेले सफर करते-करते अब थक गया हूं मुझे भी तुम जैसे हमसफर की तलाश है ।

शायद हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं अंशु ने जब उसकी बातों का कोई विरोध नहीं किया तो मोहित की हिम्मत और बढ़ गई और बोला तुम्हारे भाई दीपू को भी हमारी शादी से कोई ऐतराज नहीं है ।दीपू अपनी शादी वाले दिन भी तुम्हारी ही फिक्र कर रहा था और मुझसे तुम्हें शादी के लिए मनाने का ही आग्रह कर रहा था पर तुम उसका मोह छोड़ ही नहीं पा रही थी और अपनी खुशियों का गला घोटे जा रही थीं जो कि दीपू को दुखी कर देता था ।अंशु बोली तुम अभी सारी बात नहीं जानते हो इसलिए ऐसा कह रहे हो उसके मन में मेरे लिए अब कोई इज्जत नहीं रह गई है उसे मेरी बातें अब दखलंदाजी लगती हैं। अब मोहित से रहा नहीं गया और बोला अरे बाबा वह सब दीपू का नाटक था तुम्हारा उससे मोह तोड़ने के लिए ताकि तुम अपने जीवन में आगे बढ़ो और अपने दामन में गृहस्थ जीवन की खुशियां समेट सको ।दीपू ने ही मुझे तुम्हें लेने एयरपोर्ट भेजा है तुमने तो मुझे अपनी फ्लाइट के बारे में बताया ही नहीं था ।

यह सब सुनकर अंशु जोर जोर से रोने लगी उसने तुरंत दीपू को फोन मिलाया और रोते हुए बोली अब इतना बड़ा हो गया है कि अपनी दीदी के साथ ही नाटक खेलने लगा है मुझे माफ कर दे जो मैंने तुझे बुरा भला कहा दीपू कुछ कहता तभी मोहित ने अंशु से फोन ले लिया और दीपू से बोला मुबारक हो तुम्हारा प्लान सफल रहा। दीपू बोला अब कब लेकर आ रहे हैं बारात मैं भी अपनी बहन को धूमधाम से विदा करना चाहता हूं अब तक दीदी अभिभावक की भूमिका में थीं और अब मैं यह भूमिका निभाना चाहता हूं।



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