मानो या ना मानो

बूढ़े लोग बुढ़ापे में लाचार नज़र आते हैं

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 25 Feb, 2021 | 1 min read
#1000कविता




है आज का यह कड़वा सच, मानो या ना मानो

युवा पीढ़ी रहती है कटकर बुजुर्गों से ,मानो या ना मानो

अब तो बुज़ुर्ग लगते हैं उन्हें परिवार पर भार

हो दुधारू तो गनीमत, वरना खानी पड़ती है उन्हें बस दुत्कार

थे जो कभी सर्वेसर्वा अब निचले पायदान पर खुद को पाते हैं

उपेक्षा से बच्चों की ग़मगीन नज़र आते हैं

जब बच्चों को हो पालना तब आती है दादी- नानी की याद

भूल कर सब बातें दौड़े चले जाते हैं वो सुन बच्चों की फरियाद

अरे मतलबपरस्ती छोड़ो ,बुजु़र्गों से नाता प्यार का जोड़ो

अपनी संस्कृति अपने संस्कार को ना तुम छोड़ो

बैठो तो सही कुछ देर बुजुर्गों के पास

है उनकी अहमियत अब भी, कराओ उन्हें यह एहसास

कुछ कहना नहीं पड़ता उनसे समझ जाते हैं वो सब, देखकर हमारे हाव भाव

हैं ये ही जो डिगने नहीं देते गलत दिशा में हमारे पांव

बुजु़र्गों की छत्रछाया होती है ऐसी जैसे बरगद की शीतल छांव


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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Vandana Bhatnagar

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