दुल्हन

दुल्हन का मन सशंकित रहता है

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 20 Feb, 2021 | 1 min read
#1000कविता

दुल्हन के माथे पर सजती है जब बिंदी, टीका और मांग में सिंदूर 

नाक में नथ,हों कानों में कर्णफूल तो बरसता है नूर

बाजू में बाजूबंद और गले में हो नौलखा हार

दीवाना बना देती है हाथों में चूड़ियों की खनकार

पैरों में बिछुवे और पायल जब छनकती हैं

हरेक का ध्यान आकर्षित ज़रूर करती हैं

लगती है खूबसूरत सोलह श्रृंगार से सजी दुल्हन

दिखती है खुश पर डरती है मन ही मन

सोचती है बचपन से संग रही है जिनके

कैसे रहेगी अब वो बिन उनके

क्या कर दिया जायेगा उसे अब पराया

क्या जमा पायेगी वो अधिकार, जो अब तक जमाया

ससुराल में वो सबका मन जीत पायेगी

या फिर दहेज की खातिर वो मौत की भेंट चढ़ जायेगी

हो जाती है वो विदा फिर समेटकर आंसू और प्यार

मिलता है जब साथ मायके का और ससुरालियों का दुलार

आता है तब कहीं उसके दिल को करार

इठलाती है वो फिर ,पाकर दो दो घरबार

पाकर पति का प्यार ताउम्र करती है वो फिर सोलह श्रृंगार


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

#1000कविता

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Vandana Bhatnagar

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