दिशाहीन आदमी

समाज में बहुत सी विसंगतियां आ गई हैं

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Vandana Bhatnagar
Vandana Bhatnagar 24 Feb, 2021 | 1 min read
#1000कविता



जाने किस दौर से ज़माना गुज़रता जा रहा है


भाई-भाई के खून का प्यासा हुआ जा रहा है।




नहीं शर्म कोई सरे आम इश्क फरमाया जा रहा है


छोड़ बच्चों को प्रेमी के साथ भागा जा रहा है।




हैरान हूँ देखकर आदमी अब हैवान हुआ जा रहा है


बाप भी बेटी की अस्मत लूटता जा रहा है।




दोस्ती नहीं बस अब मतलब निकाला जा रहा है


इन्सानियत को भी शक की निगाह से देखा जा रहा है।




बेटा ही माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा है


दिख रहा है साफ घोर कलयुग आ रहा है।




मॉर्डन बनने की चाह में कपड़ा तन से उतरता जा रहा है


सोचती हूँ क्यों आदमी दिशाहीन हुआ जा रहा है।


मौलिक रचना

वन्दना भटनागर

मुज़फ्फरनगर

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Vandana Bhatnagar

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