वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ।

मोहब्बत की चादर लपेटे हुए इंतजार आंखों में समेटे हुए लम्हा वो जला नहीं जल कर वो बुझा नहीं

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Tulika Das
Tulika Das 12 Oct, 2020 | 1 min read

वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ,

मोहब्बत की चादर लपेटे हुए ,

इंतजार आंखों में समेटे हुए ,

वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है,

वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ।


कई राहें गुजर गई उस मोड़ से ,

कई सपने टूट गए उस मोड़ पे,

पर लम्हा वो टूटा नहीं ,

टूट कर बिखरा नहीं ।

वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ,

वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ।


रात होती है चांदनी जलाती है,

सुबह होती है धूप जलाती है ,

पर लम्हा वो जला नहीं,

जलकर वो बुझा नहीं ।

वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है,

वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ।


बारिश में ये पिघलता नहीं,

आसुओं में ये घुलता नहीं ,

मौसम करवटें बदल लेता है,

लम्हा ये करवट भी बदलता नहीं।

वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ,

वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ।


वोआज भी....

आज भी वो वहीं खड़ा है ,

मोहब्बत की चादर लपेटे हुए, ,

इंतजार आंखों में समेटे हुए ,

वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ,

वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है।


रचना - तुलिका दास।


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Tulika Das

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