सपनों की उड़ान

It's a poem

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Sanoj Kumar
Sanoj Kumar 30 Jan, 2021 | 0 mins read
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ठहर गया था एक पल को

मैं अपनो की बात सुनकर,

कहीं बाद में पछताना ना पड़े,

अपने मन की बात मान कर।


संदेह के घेरे में खड़ी थी

मेरी अपनी ही काबिलियत,

अपनो ने छीन लिया था मुझसे,

बिन कहे, मेरी ही शख्सियत।


बहुत कठिन थी परिस्थिति,

पर मुझे भविष्य संवारना था।

हाँ मुश्किल था मेरे लिए बहुत,

पर मुझे घरवालों को समझाना था।


पता था कि वो समझ नहीं पाएंगे,

मुझे और मेरे सपनों को,

फिर भी मुझे विश्वास दिलाना था,

अपने और मेरे अपनों को।


चल पड़ा मैं उन सपनों की ओर,

बिना अपनों का आर्शीवाद लिए।

सोचा वापस लौटूंगा जल्द कुछ बन,

अपनी एक अलग ही पहचान लिए।

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Sanoj Kumar

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