क्या हम वो ईज़्ज़त वो शोहरत कमा सकेंगे?

वो इज़्ज़त वो शोहरत हम कमा नहीं पायेंगे। कुछ धुंदली हुई यादें पर भुला नहीं पायेंगे। Yaadgaar weekend

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 15 Dec, 2020 | 1 min read
Love ,

मेरी एक पुरानी नज़्म की इस पंक्ति को 


*वो इज़्ज़त वो शोहरत हम कमा नहीं पायेंगे।*

*कुछ धुंदली हुई यादें पर भुला नहीं पायेंगे।"*


फिर से जी कर आया हूं ।



मेरे गाँव से शादी के निमंत्रण के लिए काफी फ़ोन आ रहे थे । पर शीत लहर के कारण मेरा मन नही हो रहा था कि में पिताजी को अकेले गांव जाने देता और ऐसा ही एक फ़ोन जुम्मेरात को आया और पिताजी की अनुपस्तिथि में मेने उठा लिया और उनके बहुत आग्रह करने के बाद पिताजी को लाने के लिए हा कर दी । 



अब क्योंकि अगले दो दिन मेरी भी छुटटी थी तो में पिताजी को साथ लेकर चला गया । गांव पहुँच कर पहले तो हमने खूब स्वादिष्ट आहार खाये और शाम की शादी की तैयारी कर ली थी।



ख़ैर शाम हुई और हम उस वहाँ पहुँच गये , जहाँ सबके रुकने के इंतज़ाम था , पिताजी के साथ दुल्हन के चाचा जा रहे थे , मैं पिता जी के पीछे पीछे अपने भैय्या के साथ चल रहा था , जैसे ही पिताजी अंदर गए सबने पिताजी के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और बातें होने लगी , कुछ समय बाद वो घड़ी गयी जब भोजन शुरू करने के लिए पूजा की गई ।


तभी यह समय आया जब जब चाचा जी ने हमारी ओर आते हुए कहा प्रधान जी आपसे भोजन की शुरुआत हो जाये तो हमारा कार्यक्रम सफ़ल हो जाएगा और आपकी कृपा भी बनी रहेंगी ।



ये सुनकर मेरी आँखें भर गई , जो इज़्ज़त बचपन से आजतक मैंने देखी है वो आज भी क़ायम है ।


और इन्हीं बातों का ज़िक्र मैंने अपनी कविता में किया था । ईश्वर हमारे बीच का प्रेम सदा यूंही बनाये रखे और इतनी इज़्ज़त कमा सके ।

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Shah طالب अहमद

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