रिश्तों की नोकझोंक।...

इल्ज़ाम के दौर में एहतराम किसे पसंद आता है। मज़ाक की हद रखें , कम अग़र सब्र का माद्दा है। गिरेबान में खुद के कहाँ किसी ने झांका है। गलतियों की फेहरिस्त में खुदको सबने कम आंका है। अपनी और अपनों की गलती में,होता अपना ही घाटा है। ऐसे हालातों में रिश्ता तो रहता है ,मगर भरोसा टूट जाता है।

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 21 Jun, 2020 | 0 mins read
Sourabh

इल्ज़ाम के दौर में एहतराम किसे पसंद आता है।

मज़ाक की हद रखें , कम अग़र सब्र का माद्दा है।


गिरेबान में खुद के कहाँ किसी ने झांका है।

गलतियों की फेहरिस्त में खुदको सबने कम आंका है।


अपनी और अपनों की गलती में,होता अपना ही घाटा है।

ऐसे हालातों में रिश्ता तो रहता है ,मगर भरोसा टूट जाता है।

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Shah طالب अहमद

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