( Acche log ) How profession killing personal life

Yours & Mine , 26 years experienced poetic story ,

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 05 Oct, 2019 | 1 min read

आज फिर आपका जिक्र हुआ , फिर रात भर हम सोये नहीं ।

पर आपको जान के हैरानी होगी इसबार हम ज्यादा रोये नहीं ।


मेरे ख्वाब मुझे सोने नहीं देते ।

में कितनी भी दुआ पढ़ लू मगर ज़ेहन से फिकर को खोने नहीं देते ।



वो बचपना तो बचपन से पहले ही रूठ गया था ।

पहले पढ़ाई फिर कमाई के वजह से मेरा अपनो से रिश्ता तो हैं और रहेगा पर साथ छूट गया ।



काश वो बचपन फिर से लौट आये । 

एक आगंन में रहे फिर से चाहे ज़माने से रिश्ता क्योंना टूट जाये ।


वो आपके थप्पड़ , मारना और भगाना ।

फिर माँ का बीच मे आना और गले लगाना ।

बैठ के पानी पीना और अपनी बाग़ के पास वाली बाग़ से आम चुराना ।


कभी स्कूल गोल तो कभी ट्यूशन फीस से टॉफी और गोले खाना ।

वो फूफी की अलमीरा से दवा चुराना ।

वो बड़ी अम्मा का हाथ का मलीदा खाना ।


दरवाज़े पे टकटकी लगाए बाबा का इंतज़ार करना ।

फिर मिलने वाले 2 रुपयों से मिट्टी के खिलौने और गुब्बारे लाना ।

वो बड़े भाइयों का प्यार , गांव वालों से मिलने वाला ढेर सारा दुलार ।


याद है अभी भी मुझे को सुबह की रंगोली दोपहर का शक्तिमान और शाम का चित्रहार ।

वो महा भारत वही पुरानी रामायण , इतवार को होंने वाले फिल्मो के प्रसारण।


हा याद है आपका रॉब से बाहर निकलना 

फिर सलाम मास्टरसाब कह के लोगो का गुज़रना 

बच्चों के दिलो में डर और भागना फिसलना ।


वो इज़्ज़त वो शोहरत हम कमा नहीं पाये हैँ 

कुछ धुंदली हुइ पर भूला नहीं पाये हैं ।


 चंद सिक्को को को कमाने के ख़ातिर। 

ग़ैरों से घर जाने की इजाज़त लिए जा रहे हैं । 


ख़बर हैं ज़माने में बेटा अमीर हो रहा हैं ।

पर मुझे फिक्र हैं कि मेरे अब्बू ज़ईफ़ हो रहे हैं । 


परवाह नहीं हैं ज़माने की मुझको ज़माने के मालिक तो मेरा रब हैं।

पर मेरी दुनिया का एकलौता ख़ालिक़ पहले भी तू और अब हैं ।


 रोती हैं इतना आँखे सूज जाती हैं 

मेरी माँ मुझको इतना चाहती हैं 

में भी अक्सर रोता पर माँ से छुपाता हूँ

मेरा बेटा बढ़ा हो गया समझदार हो गया उसकी कही हुई बात का फ़र्ज़ निभाता हूं ।



थोड़ी सी मोहलत खुदा से और मांगना हैँ ।

कुछ नमाज़े क़ज़ा हैं बाकी वक़्त माँ और अब्बू के साथ गुज़रना हैँ।

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Shah طالب अहमद

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