अधिकार प्रश्न का

एक कविता

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 28 Apr, 2022 | 1 min read

मछलियों को अधिकार नहीं की

वो सागर से प्रश्न कर सकें कि

तुम पालनहार हो हमारे

फिर विकराल रूप धर 

मछुआरे की घुसपैठ क्यों नहीं रोकते!

बस मछलियों को इतना ही ज्ञात है

जल बिना उनका अस्तित्व नहीं और 

उन पर उसका स्वामित्व ही

उसका रक्षक है |


चिडियों को उड़ना आता है 

पर घबड़ा जाती हैं धुँधलके में 

धरती पर अपने नीड़ की और लौटने में 

आकाश को मन में बसाए 

अक्सर अकुला जाती हैं एक सवाल से 

पूरा दिन तुम्हारे साथ बिताने पर भी 

तुम्हारे अनन्त निवास में क्यों 

हमारे लिए 

बीते भर की भी ठौर नहीं |


उपवन को हमेशा ये गर्व रहा कि 

तितलियों का पालन - पोषण 

मुझ पर निर्भर है 

और मुस्कराती तितलियां मौन रह 

पराग कणों से विस्तार कर 

उस उपवन का, उसे 

सुसज्जित करती रही |


"तो लडकियों शब्द - जाल में भ्रमित हो 

इन उपमानो में खुद को उपमेय रेखांकित कर 

कवि की कल्पना से उपजी उपमा अलंकार 

की वास्तविक प्रतिमूर्ति मत बन जाना |" 


कि याद रखना तुम स्त्री रूप में" स्वयम सक्षम सम्पूर्ण" हो 

और जो कुछ तुम्हें व्याकुल करे वहाँ प्रश्न करने का अपने अस्तित्व के लिए लड़ने का तुम्हें संपूर्ण अधिकार है |"



धन्यवाद


सुरभि शर्मा 


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