*एक चाँदनी एक सितारा *

ये कहानी रंगभेद पर सामाजिक मानसिकता को लेकर लिखी गयी है पहले हम खुद गलत मान्यता बनाते हैं फिर उससे उत्पन्न विसंगतियों को छिपाने के लिए दूसरे को नीचा दिखाते हैं |रंग रूप इश्वर प्रदत्त है स्वभाव को कभी भी रंग रूप निर्धारित नहीं कर सकता चाहे वो कोई भी रंग हो |

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 10 Jul, 2020 | 1 min read

तीन दिन से लता जी अनशन पर बैठी थी क्योंकि उनके छोटे बेटे राघव ने अपने साथ कॉलेज में पढ़ने वाली सिया को अपने जीवनसंगिनी के रूप में पसंद कर लिया था| ऐसे तो खूबसूरत सिया राघव के पूरे घर को पसंद थी, पर न जाने क्यों लता जी के मन में ये गलतफहमी बैठी हुई थी कि गोरी और खूबसूरत लड़कियां बदतमीज और फूहड़ होती हैं, घर और रिश्तों को अच्छे से संभाल नहीं पाती| उनकी बड़ी बहु कुसुम उनकी ही पसंद की थी थोड़े दबे रंग की पर दबे रंग में अक्सर एक बहुत बड़ी खासियत होती है तीखे नैन नक्श की तो देखने में तो कुसुम भी सांवले रंग की होने के बावजूद बहुत आकर्षक थी, ऊपर से जिस तरह उसने सारी घर की जिम्मेदारी संभाल ली और रिश्तों को भी जितना मान दिया कि लता जी के मन में ये बात और गहरी बैठ गयी कि सांवली लड़की ही घर को जोड़ कर रख सकती हैं, गोरी लड़की तो अपने रंग के घमंड में ही रहेगी|

सब समझा के थक चुके थे लताजी को कि ईश्वर प्रदत दिए रंग रूप का स्वभाव से क्या लेना है? पर लता जी को ये समझ नहीं आ रहा था, अंत में जब राघव ने ये फैसला सुना दिया कि आपकी मर्जी के बिना सिया से शादी नहीं करूंगा, पर अगर सिया से मेरी शादी नहीं हुई तो किसी से भी नहीं होगी, तो बेटे के मोह में लता जी को हाँ करनी ही पड़ी| पर शादी होने के बाद भी वह सिया से थोड़ी खिंची रहती, स्वभाव से अच्छी थी इसलिए बहू को ताने तो नहीं मारती पर कुसुम और सिया के साथ जो व्यवहार करती उसमें सिया को समझ आ जाता कि शायद मम्मी जी मुझसे खुश नहीं| पर वो चुप रहकर लताजी का दिल जीतने की कोशिश करती| कुसुम और सिया दोनों बहनों की तरह रहती, हँसती खिलखिलाती और सारे घर की जिम्मेदारी दोनों मिल कर बखूबी निभाती| अब लता जी का मन भी सिया के प्रति थोड़ा पिघल रहा था और गोरे रंग को लेकर वो जिस पूर्वाग्रह से ग्रसित थी वो उन्हें गलत लगने लगी थी| पर अहम के कारण स्वीकार नहीं कर पाती| ऐसे में सिया की गोद में दो नन्ही कलियों ने एक साथ कदम रख दिया| ईश्वर की महिमा के कारण एक बेटी का रँग-रूप अपने पिता की तरह सांवला हो गया और दूसरी बिल्कुल सिया पर|


सब ये सोच रहे थे कि कहीं रंगभेद के कारण अब लता जी अपनी पोतीयों में भी कोई भेदभाव न करें पर सबके आश्चर्य की तब कोई सीमा नहीं रही जब लता जी ने खुश होते हुए दोनों पोतीयों को एक साथ अपने गोद में उठा लिया| राघव ने चिढ़ाते हुए कहा कि माँ तेरी एक पोती तो बिगड़ैल निकलेगी| हँसते हुए लताजी कहने लगी कि कभी कभी बड़े लोगों से भी गलती हो जाती है, मैं ये अच्छे से समझ गयी कि ईश्वर प्रदत दिए रंग रूप का किसी के स्वभाव से कोई लेना देना नहीं होता| गुण और व्यवहार मनुष्य के घर परिवार, समाज और परिस्थिति पर निर्भर होता है |

मेरी एक पोती चांदनी और दूसरी सितारा है, दोनों का अपनी जगह है, अपना महत्त्व है और इनकी किलकारियों से ही मेरे घर उजियारा है, न कि इनके रँग रूप से| सब खुश थे कि देर से ही सही, पर लता जी को सच समझ आ गया था|


डीयर रीडर्स, आपकी क्या सोच है? क्या लड़कियों का स्वभाव ईश्वर प्रदत उनके रंग रूप से निर्धारित होता है? या फिर उनके घर परिवार और समाज द्वारा दिए संस्कार और व्यवहार से? मेरे ख्याल से तो हर किसी की अपनी अहमियत है, फिर एक को ऊपर उठाने के लिए दूसरे को नीचे क्यों गिराना, खैर ये तो रही मेरी सोच और आपकी क्या सोच है |

धन्यवाद 

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सुरभि शर्मा

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Surabhi sharma

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Sunita Pawar · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर कहानी👏👏

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