डिब्बासुर

आधुनिक युग की व्यस्तता

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 18 May, 2022 | 1 min read

बिजली के गुल होते ही सायरा और चिन्मय चिड़चिड़ा उठे| 


ये मम्मी पापा ने कहाँ फँसा दिया हमें?

एक तो जब से यहाँ आए हैं नेटवर्क गायब है ऊपर से अब बिजली भी चली गयी | हद है! कैसे काटेंगे 15 दिन यहाँ, मैं जा रहा पापा को बोलने की जल्दी चलें यहाँ से |


दस वर्षीय सायरा और आठ वर्षीय चिन्मय कुछ दिन की छुट्टियों में शहर से गाँव आए हैं, पर नेटवर्क न रहने के कारण मोबाइल उपयोग नहीं कर पा रहे इसलिए परेशान हैं |


सायरा ठुनकते हुए अपने मम्मी पापा के कमरे की तरफ जा रही थी कि तभी उसके कानों में कुछ मीठे सुरों की आवाज पड़ी |


"आरे आवा पारे आवा

नदिया किनारे आवा

सोने के कटोरवा में

दूध - भात ले के आवा" |


इतनी मीठी गुनगुनाहट सुन सायरा ने चिन्मय को आवाज लगायी कि चल दादी के पास चलें वो कुछ बहुत अच्छा गा रहीं हैं |


पहले तो चिन्मय ने मना कर दिया कि कौन जाएगा बोर होने, फिर सोचा कि अंधेरे में मच्छरों से युद्ध लड़ने से अच्छा है कि दादी से गाना ही सुन लिया जाए |


दादी के कमरे में पहुंचते ही उन्हें इतनी गर्मी में भी ठण्डक का एहसास हुआ, दादी अपने कमरे की बड़ी सी खिड़की खोल कर बैठी थी जिससे चाँदनी रात की चमचमाहट दादी के कमरे को भी जगमग कर रही थी |


दादी ने उन्हें देखते ही कहा आओ बच्चों |


दोनों बच्चों ने कहा दादी आप तो बहुत अच्छा गाती हैं हमें भी कुछ सुनाईये |

दादी बोली कि हमारे समय में राक्षसों की कहानियाँ बहुत सुनायी जाती थी आओ आज मैं तुम्हें आधुनिक युग के असुर "डब्बासुर" की कहानी सुनाती हूँ|


सायरा, चिन्मय उत्सुकता से दादी के पलंग पर चढ़ कर बैठ गए |


दादी ने कहानी शुरू की-


एक बहुत खुशहाल परिवार था जिसके सदस्य आपस में मिलजुल कर रहते और एक दूसरे की मदद करते |


इनके घर के सामने इनकी एक कलपुर्जों की दुकान थी एक दिन डिब्बासुर घूमते - घूमते उस दुकान पर आया उसने इस खुशहाल परिवार को देखा तो सोचा इसे मैं अपना शिकार बनाऊँगा |


और बस उसने रूप बदल कलपुर्जे की दुकान पर तरह-तरह के खेल दिखाने शुरू कर दिए सब उस पर मोहित होने लगे |अब सब चाहते कि डिब्बासुर उनके ही हाथ में रहे इस कारण कभी कभी लोगों में झगडे भी होने लगे फिर डिब्बासुर ने धीरे - धीरे अपने प्रतिबिंब उत्पन्न किए और घर के हर सदस्य के ऊपर डिब्बासुर का सोते - जागते, खाते - पीते अधिकार रहने लगा, जिसके कारण लोगों का आपसी मेल - मिलाप कभी बढ़ने लगा तो कभी खत्म होने लगा, घर के बड़े बुजुर्ग उपेक्षित होने लगे |स्वास्थ्य पर असर पड़ने लगा धीरे - धीरे मानव जीवन की महत्वाकांक्षा को अतिरेक पर पहुँचा कर उसने सबको अशांत कर दिया |


इतना कह कर दादी चुप हो गयी |


सायरा और चिन्मय दोनों ने दादी को अपनी बाहों में जकड़ लिया "हमारी प्यारी दादी हमें माफ कर दीजिए |हम अपनी हर छुट्टी आपके साथ बिताएंगे और आपसे अच्छी अच्छी बातें सीखेंगे और मजेदार कहानियाँ सुनेंगे |


अगले दिन मोबाइल का नेटवर्क होते हुए भी रात में दोनों बच्चे दौड़ पड़े दादी माँ के कमरे की तरफ कहानियाँ सुनने और जीवन में काम आने वाली सीख लेने |



कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |


धन्यवाद

सुरभि शर्मा 


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