मासी माँ भाग - 6

एक अलहदा सी कहानी

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 27 Dec, 2022 | 1 min read

कमरे में पहुँचते ही उसने दरवाजे की सिटकनी चढ़ायी और डायरी ले झूले पर बैठ गया | डायरी की उम्र भी लगभग 48-42 साल हो चुकी थी सफेद पन्नों से लिपटी हुई नीली - काली, लाल - हरी स्याही किसी के जीवन के हर पहलुओं की साक्षी थी |पन्नों पे थोड़ा पीत वर्ण भी अपना आधिपत्य जमाने के सफल प्रयास में थे |पर इस डायरी के रंग रूप से आभास का क्या लेना देना? उसकी उत्सुकता तो इन पन्नों पे सहेजे हुई मासी माँ की स्मृतियों के लिए थी |


पहला पन्ना खुलते ही उसकी नजर दो चोटी किए हुए मासी माँ के बचपन की एक तस्वीर पर पड़ी, वो तसवीर देख मुस्करा दिया |कितनी प्यारी सी थी मासी माँ |फिर उसने पन्ना पलटा-


1-"आज मेरा जन्मदिन है, आज मैं दस साल की हो गयी |बगल वाले चाचा जी जिनकी साड़ी की दुकान है उन्होंने मुझे एक दैनन्दिनी (डायरी) तोहफे में दी है |मैं बहुत खुश हूँ |एक दिन टीचर जी ने कक्षा में पढ़ाते हुए बताया था कि डायरी में अपने से भी कुछ कुछ लिखना चाहिए |इससे सुलेख भी सुन्दर होता है और सोचने की क्षमता भी बढ़ती है |तब से मैं सोच रही थी कि एक डायरी होती मेरे पास ऐसे तो मैं अभी बहुत छोटी हूँ पर सब बोलते हैं कि मैं बातें बहुत बड़ी - बड़ी करती हूँ तो अब ये सब मैं तुम मैं ही लिख दिया करुँगी अब |"


2-अब एक साल और बीत गया मैं ग्यारह की हो गयी डायरी तुम्हें पता है मैं नृत्य तो सात साल की उम्र से ही सीखती हूँ पर अब मुझे कढ़ाई, बुनाई, सिलाई भी सिखाई जा रही है |मुझे कभी कभी मजा आता है ये सब सीखने में पर कभी कभी बहुत ऊब भी होती है |" 


3-"अब मैं कक्षा छः में पहुँच गयी हूँ |आज पहली बार मेरा स्टेज प्रोग्राम है नृत्य का देखना ऐसा नाचुंगी की हर कोई मेरे साथ नाच उठेगा |

देखो कहा था ना मैंने की मैं बहुत अच्छा नाचुंगी, इतना बड़ा सुनहरे रँग का कप मिला है मुझे बहुत तालियां भी बजी, स्कूल की टीचर ने बहुत तारीफ भी की मेरी |"


4-आज ही मेरा तेरह वर्ष लगा और आज ही सुबह - सुबह मुझे सबने कहा की अब सयानी हो गयी हो कम बोला करो अब, घर के काम - काज सीखो |वो हुआ क्या की पता नहीं कहाँ से मेरे स्कर्ट में लाल - लाल खून लग गया मैं तो कहीं खेलने भी नहीं गयी आज की चोट लगती |माँ ने देखा तो सबकी नजरों से बचा के मुझे अपने कमरे में ले गयी और अपनी पुरानी साड़ी को फाड़ कर उसमें थोड़ा रुई डाल मोड़ मोड़ के बिल्कुल नन्हा सा गद्दा जैसा बना दिया उसका और उसे अंदर रखने को कहा और ये बात किसी को भी बताने से मना किया और कहा अब ऐसा होगा तो ऐसे ही कपड़ा लेकर अंदर रख लेना |पर मुझे अच्छा नहीं लग रहा पर क्या करूँ करना पड़ेगा |


5-मेरे बड़े भैया बबलू अब मेरे ऊपर कुछ ज्यादा ही सख्त निगरानी रखने लगे हैं मुझे कभी - कभी गुस्सा आ जाया करता है पर कुछ कर नहीं पाती |


6-अब मैं आठवीं कक्षा में पहुँच चुकी हूँ मेरे नृत्य की हर तरफ प्रशंसा होने लगी है, अब स्कूल जाते समय कुछ लड़के कभी कभी रिक्शा का पीछा भी करने लगे हैं |मुझे कभी कभी घबराहट सी होती है तो कभी हँसी सी आती है |


7- अब मुझे ज्यादा बातें करना अच्छा नहीं लगता घर के काम - काज बहुत तेजी से सिखाये जा रहे हैं मुझे अब बहुत सारी खाने की चीजें बना लेती हूँ मैं | घर से थोड़ी दूर पर एक घर है जब भी उस रास्ते से निकलती हूँ वहाँ रहने वाला पंकज अक्सर मुझे गहरी आँखों से देखा करता है मुझे लज्जा सी आ जाती है, गाल अपने आप ही लालिमा धर लेते हैं |आज उसने मुझे सबकी नजर बचा के चिट्ठी दी है |मैंने छत पर जाकर उसकी चिट्ठी पढ़ी |उसने लिखा है तुम बहुत अच्छा नृत्य करती हो एक बार मुझसे मिलोगी? 



8-मैंने बड़ी हिम्मत कर के हामी भर दी है आज शाम घर के पीछे वाले पार्क में उससे मिलने जाऊँगी |

वो मेरे लिए एक गुलाब लाया है, साथ में एक पन्ने पर शेर लिखा है, 

     "शीशी भरी गुलाब की पत्थर पर तोड़ दूँगा 

      जो तुम ना मिली तो ये दुनिया छोड़ दूँगा" 


मैं खिलखिला के हंस पड़ती हूँ उसने फिर मिलने के लिए कहा है मैंने मना कर दिया उसे मिलने से |


9-कक्षा 9 की परीक्षा सिर पे है पर मेरा मन पंकज में उलझा हुआ है उसने जैसे किसी पतंग की तरह डोरी में बाँध लिया है मुझे |


आज मैं फिर सबकी नजर बचा के पंकज से मिलने गयी ये मैं उससे सातवीं बार मिल रही हूँ |आज उसने मेरा हाथ पकड़ लिया था |बातें करते - करते अचानक से उसने मेरा सीना सहला दिया, मैं सिहर उठी और अचानक मुझे लगा कि मेरे पीरियड आ गए हैं मैं जल्दी से भागी वहाँ से घर आकर चेक किया तो बस कुछ तरल सा गिरा था |पूरी रात मैं उस स्पर्श को याद कर सिहरती रही|


आज से मेरा शाम में बेमतलब घर से बाहर निकलना बंद कर दिया गया है |ऐसे उस दिन के बाद से मैं पंकज से अब तक मिली नहीं पर वो छुअन कभी - कभी मेरे दिमाग पर तारी हो जाती है मन करता है कि सारी दुनिया को अपनी बाहों में जकड़ कर चूम लूँ |


क्या फिर कभी पंकज से मिल पाऊँगी मैं? क्या वो फिर मुझे यूँ ही........ 


आभास ने इतना अभी पढ़ा था कि दरवाजे पे खटखटाहट हुई |


क्रमशः 

सुरभि शर्मा 






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