राम मेरी नज़र से

मेरी नज़रो से राम का अनछुआ पक्ष

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Sumita Sharma
Sumita Sharma 07 Aug, 2020 | 1 min read

राम होना है कहां आसान जग में।

अनगिनत हैं शूल पुरूषोत्तम के पग में

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बाट सिंहासन की थी तब वन मिला

प्रिय हरण का और दारुण दुःख मिला

लड़ गया भुजबल में भारी दाशमुख से

अनगिनत है शूल ...


सिय परीक्षा दोष भी निज सिर लिया

किन्तु न संशय नहीं इक पल किया

राजव्रत ही उच्च था कर्तव्य मग में

अनगिनत है शूल...


शत्रु से लड़ना सहज था सम जो होता

प्रिय पे नित आरोप पर किस भांति सहता

हार बैठा पति, प्रजा के शब्द बल से

अनगिनत हैं शूल...


मान हर स्त्री को जीवन में दिया

पर तमस में ही रहा हिय का दिया

युद्ध खुद से ही लडा अंतर समर में

अनगिनत है शूल...


अनकही पीड़ा गरल सी पी गया

जो भी छीना जग ने देता ही गया

फिर भी आरोपों से लथपथ ध्रुव शपथ में

अनगिनत है शूल...

सुमिता शर्मा

कानपुर

मौलिक

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Sumita Sharma

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