अदृश्य बेड़ियाँ

 हम जकडे़ रहते हैं अदृश्य बेडियों में,

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Suman Ji
Suman Ji 08 Sep, 2020 | 1 min read

अदृश्य बेडियाँ

 

 हम जकडे़ रहते हैं 

अदृश्य बेडियों में,

कही जाति - मजहब के नाम पर, 

रीति रिवाज ,

कही पाखंड और 

अंधविश्वास के नाम पर,

जन्म से ही 

बांध दिया जाता हैं इनको पैरो में ।

 

अदृश्य होकर भी यह

रोकती हैं, टोकती हैं 

सीमित करती हैं दायरे, 

भावनाओं के, 

मिलने के, 

सोचने - विचारने के।

 

आगे बढ़ने के लिए इनको

मरोड़ना और 

तोड़ना पड़ता हैं,

संघर्ष दौरान,

अंग भंग हो जाने पर भी

जारी रहती हैं जीवन यात्रा, 

यह प्रतीक हैं स्वतंत्रता का 

खुले आकाश में विचरण करने का।

 

जो बंधे हैं 

अदृश्य बेडियों में 

एक मृगतृष्णा की भांति

यह उनको भटकाती हैं,

मानसिक विकार बढा़ती हैं।

सीमाए तय करती हैं 

काटती,छांटती हैं ।

 

अदृश्य बेडियाँ

मात्र बेडियाँ नहीं 

प्रतीक हैं यह गुलामी का,

दासत्व का।

और अंत हैं

स्वतंत्रता का। 

 

 

©® सुमन

 

 
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