शरारतें भी जरूरी हैं..

आया है मुझे फिर याद वो जालिम, गुजरा जमाना बचपन का.....

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 17 Jul, 2020 | 1 min read
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गम्भीर स्वभाव की वो लडकी सहमी सहमी सी रहती थी, हालांकि ऐसा नही था कि वो बोलना नही जानती थी, लडाई झगडा हो जाये तो खूब चीखती चिल्लाती भी, लेकिन शरारते करनी, खेलना, तोड़ फोड़ करना, इस सब में पीछे ही रह जाती... माता पिता की एक एक बात का अक्षरश पालन करती और कौन माता पिता बच्चो को शरारत के लिए प्रेरित करेंगें भला..? 

कुछ छोटे मोटे काम करती और किताबो में लगी रहती, किताब भी स्कूल वाली, कहीं से कोई अखबार का टुकडा मिल जाता उसे भी पढ लेती.. जो पढती थी ,उसकी ही कल्पना दिमाग के पिछले हिस्से में चलती रहती, वही उसके लिए पूरा आकाश था... स्कूल में मास्टर जी की लाडली क्योंकि सब याद कर लेती थी जल्दी..! 

मासूम इतनी कि कोई बच्चा, दोस्त बनाने को ओफर रखता, तो भी गम्भीरता से विचार करती, आधी रबड ले लें, एक कलम ले ले, या आधा ब्लेड.. 

इन सबमें आकर्षण का केंद्र ब्लेड ही था, क्योंक बाकी चीजे तो उसके पास होती थी, ब्लैड नही.. उसके पिता कहते थे हाथ कट जायेगा इसलिए ब्लैड नही, घर से कलम बनाकर देंगें... जैसी तुम्हें चाहिए, मोटी कलम, उससे पतली और बारीक...। 

लेकिन फिर भी लिखते हुए टूट जाती है तो दो दो ले जाओ.. इसलिए ब्लैड की रिस्वत देकर दोस्त बनने वाले बच्चो पर, हमेशा गौर फरमाया गया...! 

और सबसे मजे की बात जिन कारणो से सहपाठी कट्टी करते थे, उसी कारण से वो जोडते भी थे , दोस्ती टूट जाती थी पढाई की वजह से ,जब मास्टर जी कहते जिनके याद नही निकला इनके एक एक थप्पड लगा, और वो डरते डरते हल्का सा चपत लगाती कि सहपाठी बुरा ना मान जाए लेकिन मास्टर जी फिर कहते.. कैडा हाथ चला, नही तो मैं तेरे मार के दिखाऊंगा कि कैसे लगता है...! ये उस वक्त का सबसे बडा धर्मसंकट था लेकिन फिर भी गारंटी थी कि उसके मारे थप्पड़ से किसी को चोट ना लगी, कभी... क्योंकि थप्पड भी मन से ही मारे जाते हैं, और मन हाथ से भी ज्यादा नाजुक...! 

फिर भी सहपाठी मुंह फुलाते, बोलना बंद कर देते और फिर जब परीक्षा या टैस्ट निकट आता तो वही सहपाठी प्रस्ताव पेश करते कि दोस्ती कर ले, हमें अपनी कोपी से नकल करा देना, तो वही एक बात.. अच्छी पढाई, दोस्ती करा रही थी, वही तुडवा रही थी ...।

इस तरह की अनगिनत बातो से भरा, बचपन ना जाने कब बीत गया... कभी कभी लगता है शरारतें भी जरूरी है और धमाचौकड़ी भी जो कि की ही नही...।। 


©®sonnu Lamba 

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    Very nice

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    कथा की अंतिम पंक्ति वाकई में लाजवाब है।👌👌सुंदर कथा

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    @संदीप जी, अपने ही बचपन की बातें हैं, संस्मरण धन्यवाद..!

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    @बबीता जी, धन्यवाद!

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