बालकनी से मौसम...

एक खुशनुमा सुबह की कहानी

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 17 Aug, 2020 | 1 min read
Life Nature Love

बरसात की एक सुबह है ये...पेड पौधे एकदम धुले धुले और निखरे निखरे हैं...लगता है रात में बारिश हुयी है..सडके भीगी दिख रही हैं...बादल अभी भी अपना काम कर रहे हैं..उनकी आवाजाही बदस्तूर जारी है..लगता है जो उन्होने गर्मियों की तेज धूप में जमा किया था सारा जल लौटाकर ही मानेंगें....इधर से उधर ..क्या जगह चुनते होंगें 

बरसने को ..कितना बेहतर हो कि जहां सूखा हो...उमस हो...लोग इंतजार करते हों...उनका ..वहीं जाकर बरसे ...जहां पहले से ही भरमार है जल ही जल हो रहा है...वो जगह छोड दें...प्रकृति के इशारे धरती वाले कब समझे हैं...वो तो मनमानियां करते हैं और अपने लिए सुखद वातावरण चाहते हैं...नही मिलता शिकायतें करते हैं....लेकिन प्रकृति शिकायते नही करती ...सीधे प्रलय धारण कर लेती है....।

खैर ...बादलो की इस आवाजाही से पेड पौधे पक्षी सब हर्षित हैं...शायद उन्हे भय नही है...कीचड हो जाने का ...पानी भरने का...नमी आने का या छत ही टपकने का...निर्भय होना ही आनन्द का विषय होता है....चिंताएं छल करती है...सारा आनन्द लूट लेती हैं..।

ठंडी ठंडी हवा चल रही है...धीरे धीरे...जब बालो से या गालो से टकराती हैं तो लगता है जैसे मां का स्पर्श है...मां ने सहलाया है...पूरब दिशा में उजियारा है लेकिन सूरज दादा अभी छिपे बैठे हैं..शायद भींगने से डरते हैं बारिश के मौसम में कभी बाहर नही निकलते...चिडिंयें चहचहा रही हैं...कौवो के स्वर भी कान मे पड रहे हैं...फिर भी शांत है सुबह...।

हां दूर सडक से कुछ हार्न की आवाजे सुनायी देती हैं ...वाहनो का आना जाना रात दिन ...मौसम कोई भी हो....बदस्तूर जारी रहता है...मैं सोचती हूं ...सडक को कभी सांस नही आती होगी ...हर समय दबा कुचला जाने किसे पंसद भला...लेकिन सडको की नियति में ये बोझ और ये शोर ही है ...।

गौरेयां दाना चुगने आ गयी हैं...उनकी धीमी धीमी चूं चूं भी अपनी ओर ध्यान खींच ही लेती है...अब उनको मेरे यहां होने से फर्क नही पडता...वो समझ गयी है ये हमारे मित्रो में है..इसलिए मेरे सामने ही वे नाचती झूमती दाना चुगती है...आपस में लडती झगडती है...।

बरसात की इस सुहानी भोर से आप सभी को ...सुप्रभात ...राम राम🌸


@सोनू लाम्बा..🏵

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