असली दर्पण

एक दिन, अपने कॉलेज जाते हुए रास्ते में, एक कन्सटरक्शन साइट पर कुछ बच्चो को गौर से देखा, कुछ देर तक, उनकी गतिविधियां देखी तब ये विचार मन में उपजे, ये 1995 की बात है, फिर घर आकर ये कविता स्वत: ही लिखी गयी..!

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 09 Dec, 2020 | 1 min read
Obstacles of life Children India Poverty

उस तंग गली की ,नुक्कड पर..            

मासूम छोटे बच्चो का समूह...

मेरी नजरे अचानक अटक गयी उन पर..।


फटकर लीर हुए वस्त्रो के,                .                 

रंग खो चुके थे कंही,

बहुत उदास लगा मुझे वो बचपन...।


जीवन से अनभिज्ञ ,

मुरझाये चेहरो से झांकती सूनी आंखे ,

तैर रहे थे जिनमें कुछ निश्छल स्वपन..।


खाता देख किसी को,

ललचायी नजरो से देखकर,मुँह फेरना..

बहुत अनुभवी लगा मुझे वो बचपन....।


मैली उंगलियो से...

एक-दूसरे के बाल संवारता,

वो निर्जीव सा बचपन......।


दुनिया की चमक...                                        

बौनी लगी उस पल..

बेबसी उनकी कह गयी...

क्या ? यही है ...

भारत का असली दर्पण..॥

©®sonnu Lamba 

(This poem was published in 

"Denik jagran" meerut ...dated 18 may 1996.)

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Sonnu Lamba

sonnulamba

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Vridhi Chug · 3 years ago last edited 3 years ago

    Beautiful Sonnu ji

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    निर्धन बच्चों की पीड़ा दर्द का क्या खूब वर्णन👌👌रचना का अंत एक गंभीर प्रश्न करता हुआ

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks dear virdhi

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thank you, bhai kumar

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