बचपन के नवरात्र....

संस्मरण (जब पहली बार बनायी मैने मां की मूर्ति..)

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Sonnu Lamba
Sonnu Lamba 17 Oct, 2020 | 1 min read
Sprituality Childhood memories Durga puja Festivals Golden days

नवरात्र की यादें....🎉

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नवरात्र बचपन से ही बहुत लुभाते हैं...दुर्गा पूजा...घर से सुबह शाम आती भीनी भीनी हवन की खुशबु...खूब सारा प्रसाद ..मां की आरती और मां के हाथो का बना फलाहार ...(जो अब नही मिलता...)


मेरा बचपन मेरठ जिले के एक गांव में बीता ...मम्मी और सभी आस पडोस की ताई चाची खुद ही खेत से चिकनी मिट्टी लाती ...उसे कूट ..छानकर साफ करती ...फिर उसमें रूई मिलाकर उससे मां की मूर्ति तैयार करती ...वे उसे एक औरत की शक्ल दे देती थी और उसको सांजी बोलते थे..।


ये काम सभी महिलाये ग्रुप में मिलकर इन्ही दिनो में करती थी ताकि अमावस तक सभी मूर्तियां अच्छे से सूख जाये...हम बच्चे भी ये सब देखकर बडे हो रहे थे...और उनकी जो मदद होती वो भी करते ...मूर्ति बनाने के बाद जो मिट्टी बचती उससे चिडियां...चांद तारे हम ही लोग बनाते..मां का दरबार सजाने को और फिर अमावस को उनको कलर करते ..सूखने पर गाय के गोबर की मदद से उसको दीवार पर चिपकाते..।ये सब कितना इको फ्रैंडली था...लिखने में भी कितना अच्छा लग रहा है...।

एक बार मैने मम्मी से कहा कि शेरावाली मां की मूर्ति बनाओ...तो मम्मी ने देखकर बनायी जैसी भी बनी ...बस शेर उसमे अच्छा सा ना बना लेकिन वो मूर्ति इतनी हिट हुई कि आस पडोस के लोग मम्मी को बुलाने लगे...हमारी भी बना दो..।

चार पांच साल फिर ऐसे ही चला...हम ओर बडा हुए और मम्मी से कहा शेर को थोडा असली सा बनाओ ..मम्मी ..।

फिर क्या था...मम्मी ने कहा...अबकी मूर्ति तुम बनाओगी जैसी बनानी है बना लो...हम बहुत उत्साहित ...मन ही मन जाने कितनी सुन्दर सुन्दर मूर्तियां रच डाली...मां की..।


खैर मिट्टी हाथ.में लेकर मूर्ति बनाने की बेला भी आ पहुंची....और हमने बेस बनाना शुरू किया ...सबसे पहले शेर.."""""

अब शेर तो बने ही ना सही से...कैसे भी बना लिया..शेर बना ही नही..उम्र होगी उस वक्त बारह साल...बहुत दुखी होके हम शांति से बैठकर इधर उधर देखने लगे...कि भैया फेल हो गये पहली ही कोशिश में...अब चले मम्मी के पास कि आप ही बना लो...।


और तभी....तभी सामने दीवार पर लक्ष्मी मां कैलेण्डर में हमें मुस्कुराती दिखायी दी...और दिल में एक साथ कईं घंटियां बजने लगी...और हमने आव देखा ना ताव ...फटाक से कमल का फूल बना डाला और उस पर बैठा दिया हंसती मुस्कुराती लक्ष्मी मैया को...।


मम्मी आयी...बोली कहां है..शेरावाली मां नही बनायी ...मैने कहा मम्मी ...मां तो मां ही हैं ..कोई भी हो सब उन्ही का तो रूप हैं...मम्मी को जबाब भी पसंद आया और मूर्ति भी...। पडोस वाली आंटी देखने आयी और बोली मेरी भी बना अब...।

गांधीजी पहले ही कह कर चले गये थे कि अच्छे काम का इनाम ओर काम..।

इस तरह हमारी वो मूर्ति भी हिट हो गयी ..अगले 4 साल लगातार लक्ष्मी मां की मूर्ति बनाती रही मैं और उसी की पूजा हम सब करते रहे...फिर मैं चली गयी हॉस्टल और फिर मूर्ति बनाने का जिम्मा आया ...मेरी छोटी बहन पर ...अब उसने भरसक प्रयास किया कि मेरे जैसी लक्ष्मी मां की मूर्ति बनायें लेकिन नही बनी उससे...और उसने हार कर शेरावाली मां बना ली...। और ये सब तो हम सबके मन में अच्छी तरह सैट हो ही चुका था कि मां तो एक ही है रूप कोई भी हो..।


उन नवरात्र का उत्साह ही अलग हुआ करता था... यादें बहुत सारी हैं...और सभी आज भी ताजा..।

क्यूंकी अपने इस संस्मरण में मैने मूर्ति का जिक्र किया है तो सबसे यही विनती रहेगी कि मूर्ति खुद बनायें या दूसरो से तैयार करायें वो मिट्टी की हो...नही तो आप लोग जानते ही नदियों की क्या हालत है आजकल ..।


अपने देश में नदियों को भी मां मानते हैं हम ...उनकी भी पूजा करते हैं फिर उन्हे गंदा कैसे कर सकते हैं और दिन पर दिन हो रही पानी की किल्लत से कौन वाकिफ नही भला..।

और अंत में एक अहम सवाल जिन मां की पूजा हम इतने मन से नौ दिन तक करते हैं...उनकी मूर्तियां नदियों के तट पर अजीब हालत में टूटी फूटी होकर पडी रहें ....अच्छा तो नही लगता ना..??


नवरात्र की बहुत बहुत शुभकामनाएं ...🎉🎉🎉

@sonnu lamba

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Sonnu Lamba

sonnulamba

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Namrata Pandey · 3 years ago last edited 3 years ago

    सुन्दर

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    थैंक्यू डीयर

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