प्रतिशोध

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Sonia saini
Sonia saini 08 May, 2020 | 1 min read

I सन 1830,दौलताबाद के महाराज विक्रम सिंह और उनकी पत्नी रुक्मणी एक सुखी विवाहित जीवन जी रहे थे। उनके जीवन में एक भूचाल तब आया जब महाराज के रंगीन मिजाज होने की भनक महारानी को लगी।महाराज अपना राज पाट धन दौलत सब एक नृतकी पर न्यौछावर करने पर तुल गए थे । पूरे राज्य में खबर आग की तरह फैल गई। महारानी किसी भी हाल में अपने राज्य और महाराज को खोना नहीं चाहती थी. महारानी ने एक काला जादू करने वाली तंत्रणी को बुलवाया और उसे सारी समस्या सुनाकर उसका हल पूछा। जीवन या मृत्यु किसी भी कीमत पर रुक्मणी उस नृतकी को राजमहल से दूर करना चाहती थी। तंत्रणी ने पूरी बात गंभीरता से सुनने के पश्चात एक काली शक्ति को रुक्मणी को देने का सुझाव दिया। किंतु उस काली शक्ति को गहरे पानी में ही कैद रखा जा सकता था, अन्यथा वह बेकाबू होकर विनाश कर सकती थी। महारानी ने काफी सोच विचार करने के बाद अपने किले की बावड़ी में उस काली शक्ति को कैद कराने का विचार किया।अमावस्या की काली रात को रुक्मणी और तंत्रिनी ने काली शक्तियों का आह्वान किया और तंत्र मंत्र के प्रभाव से बावड़ी में रूहानी ताकत को स्थापित कर दिया। यह बावड़ी महारानी स्नान आदि के लिए उपयोग करती थी किसी और को वहाँ जाने की इजाजत नहीं थी, अतः किसी को भी इस बात की कानों कान भनक नहीं पड़ी।
महाराज ने नृतकी से विवाह कर लिया था और अब वह भी किले में ही रहने लगी थी। महारानी से वैर निकालने के उद्देश्य से नृतकी ने महाराज से बावड़ी उपहार स्वरूप  माँग ली। महाराज उसके प्रेम में इतने मग्न थे कि उन्होने भी तुरंत सहमति दे डाली।
उसी रात मध्यरात्रि ओम हिम क्लीम चमुंडाएं विचे.... जैसे मंत्र गूंजने लगे और महारानी रुक्मणी ने अपनी तंत्र विद्या का आह्वान करके नकारात्मक शक्ति को जागृत कर दिया। अगले दिन जब नृतकी बावड़ी में स्नान के लिए गई तो उसे कुछ असामान्य सा महसूस हुआ। वह स्नान करने लगी तो उसे लगा जैसे वहाँ का पानी लाल हो गया है। उस पानी में जब उसने अपनी परछाई देखी तो वह डर से चीख उठी। पानी में एक नही दो परछाइयाँ दिखाई पड़ रही थी। बावड़ी तक पहुँचने वाली सीढ़ियों पर अचानक किसी के चढ़ने उतरने की आवाज आने लगी। नृतकी ने चीख कर अपने दोनों हाथों से कान बंद कर लिए। नृतकी वहाँ से भाग जाना चाहती थी। बावड़ी की घुमावदार सीढ़ियों से टकराकर एक भयानक हँसी पूरे वातावरण में गूँजने लगी। वह पूरे सामर्थ्य से सीढ़ियों की ओर भागने लगी। सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते उसकी साँस फूल रही थी। उसकी चाल सुस्त होती जा रही थी और हलक सूखता जा रहा था। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए वह इतनी बेसुध हो गई थी कि उसके अंदर चीखने की भी ताकत नहीं बची थी। अंत में एक जोरदार धक्का लगा और वह वापिस गहरे पानी में आ गिरी। उसकी चीखें उसके मुँह में ही घुट गई थी। आँखें बाहर निकल आई थी और वह गहरे पानी में तली को स्पर्श कर रही थी। कुछ देर बाद काली शक्ति की भूख शांत होने के पश्चात वह जल के ऊपरी सतह पर तैरने लगी थी।
नृतकी की मौत की खबर सुनकर महारानी रुक्मणी फूली नहीं समा रही थी।रुक्मणी को लग रहा था जैसे अब उसके जीवन में चिंता की कोई वजह ही नहीं बची है। एक दिन संध्या वेला में उन्हे स्नान करने का मन हुआ। अपनी प्रिय बावड़ी को देखने और धन्यवाद देने के लिए मन ही मन प्रसन्न होती वह बावड़ी जा पहुँची।
अक्सर काली शक्तियों को मनुष्य जितना समझता है वह उससे अधिक शक्तिशाली होती हैं। तंत्रणी ने रुक्मणी को यह नहीं बताया था कि एक बार अगर इसके मुँह खून लगा तो यह सौ गुना शक्तिशाली और खतरनाक हो जाएगी। आग से खेलने पर अपने घर में भी आग लगने के खतरे को भूलते हुए महारानी बावड़ी में उतर गईं। काफी देर तक स्नान करने के पश्चात उन्हें स्मरण हुआ कि दिन ढल चुका है और उन्हे महल की ओर लौटना चाहिए। बावड़ी से बाहर निकलते हुए महारानी को एहसास हुआ मानो कोई उनके पीछे पीछे चल रहा है। रुक्मणी पसीने से तरबतर हो गई थी। किसी तरह सूखते कंठ के साथ वह महल पहुँची। जलदबाज़ी में उसने अपने वस्त्र भी बेतरतीब पहन रखे थे। वह तेज़ कदमों से अपने कक्ष पहुँच गई। उस रात रुक्मणी की आँखों से नींद कोसों दूर रही। मध्य रात्रि महाराज का आगमन हुआ तो रुक्मणी कुछ संभल कर बैठ गई। कुछ देर के वार्तालाप के बाद महाराज रुक्मणी को स्पर्श करने लगे। महाराज का स्पर्श पाते ही रुक्मणी की आँखें क्रोध से लाल हो गई। अचानक ही उसका रूप बदलने लगा और रुक्मणी में नृतकी की झलक दिखाई देने लगी। वह क्रोध से गुरराई! उसकी आँखों से खून टपकने लगा। महाराज यह सब देख सकपका गए।
"मुझे मौत का उपहार देने के बाद अब तू रानी के साथ प्रेमालाप कर रहा है!! नीच इंसान... तूने मुझे एक वस्तु की तरह उपयोग किया! मेरे जाते ही तुझे अपनी पत्नी याद आ गई! किन्तु मैं तेरी तरह नहीं मैं सिर्फ़ तुझसे ही प्रेम करती थी। अब तू मेरे साथ जाएगा मेरी बावड़ी में...! वहाँ के शीतल जल में हम दोनों सदा साथ रहेंगे...!! "रुक्मणी की आँखें पलट चुकी थीं, पैर भी उलट गए थे! वह इतनी भयानक लग रही थी कि विक्रम की चीख भी मुँह से बाहर नहीं निकल पा रही थी।
" तू मेरे साथ चलेगा और ये तेरी महारानी भी....! इसे इसके किए की सजा भी तो देनी है। "
अगली सुबह महल में रुक्मणी और विक्रम के क्षत विक्षत शव बरामद हुए। उस दिन के बाद दौलताबाद के किले में कुछ भी शुभ नहीं हुआ। धीरे धीरे मनहूसियत ऐसी हावी हुई कि पूरे राज्य का सर्वनाश हो गया। समय बदला और बाद में सरकार ने इस महल को हेरिटेज विभाग को दे दिया। अब यह सरकारी संपत्ति है। किंतु इसके खौफनाक किस्से ऐसे हैं कि कोई यहाँ नहीं आना चाहता। वर्तमान में यह बावड़ी ऐसे ही उपेक्षित सी पड़ी है।
"तो फिर इतनी खतरनाक जगह आप हमें क्यूँ ले आए? वैसे भी दिन ढलने को है चलिए जल्दी से बाहर चलते हैं।" पर्यटक ने अपने गाइड से कहा।
"क्यूँकि बहुत दिन हुए बावड़ी की प्यास बुझे हुए।" गाइड ने रहस्यमय मुस्कान बिखेर कर कहा।
अगली सुबह दौलताबाद घूमने आए एक दम्पति के गायब होने की खबर अखबार में मुख्य पृष्ठ पर छपी थी.

सोनिया निशांत कुशवाहा


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