प्रकृति

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Sonia saini
Sonia saini 23 Apr, 2020 | 0 mins read

धरती का सीना चीरकर

जब बोया था कनक उसने

प्रकृति मुस्कुराई थी

लुटाई नेमतें उसने

पीकर के जल सरिता का

जीनाकीर्ण हुई जब नस्लें।

रहने को घर बनाए फिर

काट दिए वन मनुज ने,

आँसुओं से फिर प्रकृति के

आ गई बाढ़ धरती पर

कर कर के दोहन उसके हर अंग का

तोड़ दी शोषण की दहलीजें

सहते सहते धरा भी अब

चीत्कार उठती है

कभी भूकंप कभी सूखा

कभी अगणित बरसात गिरती है।

वो माँ है फिर भी

आखिर कब तक सहती जाएगी

सुधारने को मनु को

अब वो फटकार लगाएगी।

छीन लेगी एक झटके में

साँसें भी वह तुझसे

तुझे वह दो पल में

महामानव से

आदिमानव बनाएगी।

सोनिया कुशवाहा

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Sonia saini

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