मन की गुल्लक

एक प्यारे से बच्चे की गुल्लक की कहानी।

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Dr.Shweta Prakash Kukreja
Dr.Shweta Prakash Kukreja 03 May, 2022 | 0 mins read

"अम्मा ये कब भरेगी?कब इसमें सौ रुपये हो जाएंगे?" करन ने फिर गुल्लक उठा दादी से पूछा।जब से पापा ने उसे गुल्लक लाकर दी थी सारा दिन बस उसे हाथ में लिए घूमता रहता था।


"हे भगवान! अभी तो आयी है गुल्लक।एक दिन में न भरेगी।वैसे करेगा क्या इतने रुपये का?"स्वेटर बुनते हुए दादी बोली।

"रोहन के पास जैसा वीडियो गेम है न वैसा ही लूँगा।कितने दिन में इकट्ठे होंगे सौ रुपये?"मासूमियत से उसने पूछा।


"मंदिर के सामने जा के बैठ जा,जल्दी हो जाएंगे सौ रुपये।"दीदी उसे चिड़ाते हुए बोली।" जब देखो मुझे चिढ़ाती रहती है। "वो बेचारा पैर पटकते हुए वहां से चला गया।


सारा दिन बस गुल्लक लिए घूमता रहता करन।जहाँ सिक्का मिलता तुरंत गुल्लक में डाल देता।न टॉफ़ी खाता न ही गुब्बारा यहाँ तक पतंग भी न लेता।उस दिन दादी के साथ बरामदे में बैठा था कि अचानक ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा।


"क्यों हंस रहा है पगले,क्या देख लिया?" दादी ने चपत लगाते हुए पूछा।पर वह न रुका,बस हँसता ही रहा।

"बता न लड़के,क्या हुआ?" दादी ने फिर पूछा।


"देखो ज़रा बिज्जू चाचा ने...हाहाहाहा... अपने बेटे के कान पत्ते से ढंक दिए है...हाहाहाहा...,इतना छोटा मुँह और इत्ते बड़े कान..हाहाहाहा।"हँसते हँसते वह गिर पड़ा।


दादी न हँसी बल्कि गंभीर स्वर में बोली,"हर किसी की किस्मत में टोपा नहीं होता करन।पर एक पिता अपने कलेजे के टुकड़े को बचाने की भरसक कोशिश करता है।शायद बिज्जू चाचा के पास इतने पैसे नहीं है कि वो टोपा खरीद पाएं।"


करन चुप हो गया।उस दिन के बाद से रोज़ बिज्जू चाचा को देखता। पर अब उनको देखकर उसे हँसी नहीं आती थी।फिर एक दिन उसके कमरे से आवाज़ आयी...फटा.ट टा...कक!

"हाय राम।अब क्या फोड़ा इस लड़के ने?नाक में दम कर दिया है।करन क्या तोड़ा?"दादी तुरंत कमरे में आई तो देखा कि करन गुल्लक में से पैसे निकाल रहा था।


"अम्मा पिंच्चानवे रुपये हो गए है...इतने में तो ऊनी टोपा आ जायेगा न?"करन ने पूछा।

"टोपा? तुझे तो गेम लेना है ना?"दादी ने पूछा।

"अब नहीं चाहिए,फिर ले लूंगा।अभी तो टोपा लेना है।"करन बाहर की ओर दौड़ा।


"अरे! अभी तो गुल्लक भरी भी न थी...वीडियो गेम कैसे लेगा?"दीदी ज़ोर से चिल्लाई।


"गुल्लक तो भर गई अंकु।मन की गुल्लक में मानवता,प्रेम और दया का धन इक्कठा हो गया आज।मेरा करन आज बड़ा हो गया। और वीडियो गेम का क्या है,वो तो कब से मेरी अलमारी में पड़ा है।" दादी मुस्कुराते हुए बोली।उनकी आँखों में खुशी के आँसू भर आये थे।



©डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा


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