रोज़ डे

गुलाब के बिना भी रोज़ डे मनाया जा सकता है।एक मीठी,प्यारी सी कहानी प्यार के मायने बताती हुई।

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Dr.Shweta Prakash Kukreja
Dr.Shweta Prakash Kukreja 07 Feb, 2022 | 1 min read
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"अरे आज का अखबार पढ़ा?कितने प्यार भरे मैसेज भेजे है सबने अपने मेहबूब के लिए।आज रोज़ डे है न।" रीमा चहकते हुए बोली।

"हम्म।" नीरज ने बिना उसकी तरफ देखे बोला।

"आपको तो बस अपने लैपटॉप से ही प्यार है।जब देखो इसी में आँखें गड़ाए बैठे रहते हो।कौन कहेगा हमारी भी सत्ताईस साल पहले लव मैरिज हुई थी।लव तो पता नहीं कहाँ चला गया है।" चिड़चिड़ाते हुए उसने अखबार टेबल पर रख दिया।

"क्या यार सुबह सुबह तलवार लेकर शुरू हो गयी हो।अब क्या हमारी उम्र है रोज़ डे मनाने की।और क्या पहले कभी मैंने तुम्हें गुलाब नहीं दिए जो ताने मार रही हो।"नीरज भी चिढ़ गया।

"हाँ ,जब तक हाँ नहीं कि थी तब तक ही गुलाब दिए।अब तो तुम्हें अपने काम के अलावा कुछ नहीं सूझता।"उसके आँसू आ गए।

"लो अब फिर शुरू न हो जाओ।"नीरज उठ के चला गया।

उसके ऑफिस जाने के बाद रीमा खूब रोइ।ऐसा नहीं था कि कुछ कमी थी।दोनों बच्चे अपने जीवन में खुश थे।नीरज ने कभी कोई कमी नहीं होने दी पर पता नहीं क्यों वह आजकल बड़ा झुंझला जाती थी।वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी।बात बात पर उसे रोना आ जाता था।कभी बाई पर नाराज़ हो जाती तो कभी बच्चों की बात बुरी लग जाती।

ऑफिस में नीरज की बड़ी बहन का फ़ोन आया।उसने उन्हें सुबह का सारा किस्सा सुनाया।दीदी गंभीर स्वर में बोली,

"नीरज तुम रीमा को समझ नहीं पा रहे हो।उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण समय है जिसकी वजह से वह उखड़ जाती है।मीनोपॉज के बारे में तो सुना होगा न।इस दौरान औरतों में काफी मूड स्विंग भी होते है।जीवन के हर मोड़ पर वह तुम्हारे साथ थी।अब तुम्हारी बारी है।तुम समझ रहे हो न?"


"हाँ ,दी अब समझ आया।थैंक यू दी आपने इतनी बड़ी बात समझायी मुझे।अब मैं उसका पूरा ध्यान रखूंगा।"नीरज ने तुरंत फ़ोन रखा और घड़ी की ओर देखा।छः बज चुके थे।वैसे वह सात बजे के बाद घर जाता था पर आज उसने तुरंत अपना सामान उठाया और पार्किंग की तरफ चल दिया।बाजार में हर जगह उसने गुलाब ढूंढा पर कहीं भी गुलाब न मिला।फिर कुछ सूझा और झट से उसने कार मोड़ ली।


घर पहुँच घंटी बजाई तो रीमा ने गेट खोला।

"क्या हुआ सब ठीक है?आज इतनी जल्दी कैसे?" वह चौंक गई।

नीरज गेट पर ही अपने घुटनों पर आ गया," जाने जिगर मेरी जानेमन ,आज पूरी कायनात के सामने मैं अपनी मोहब्बत का इज़हार करता हूँ।" और गोभी का फूल अपने हाथों में ले उसकी ओर बढ़ा दिया।

"गुलाब का क्या है,एक दिन में सूख जाएगा,

मैं गोभी लाया हूँ,जिसके मंचूरियन का स्वाद मुँह में पानी ले आएगा।"

"वाह वाह भाईसाब,क्या शेर फरमाया है।" बगल वाले शर्माजी जो अपने दरवाजे पर थे, उन्होंने चुटकी ली।

रीमा शर्म से लाल हो रही थी।"ये क्या पागलपन है।उठो जल्दी।ये उम्र है क्या इश्क़ करने की।"उसने गोभी हाथ में लेते हुए कहा।

"मोहब्बत कहाँ उम्र की मोहताज होती है।सही कहा न शर्माजी।"नीरज ने उन्हें आँख मारी और अंदर चल दिया।

"क्या हो गया है आपको?" रीमा मुस्कुराये जा रही थी।

नीरज ने उसके माथे को चूमा,"आज रोज़ डे मनाने का मन हुआ।पर गुलाब नहीं मिला तो सोचा गोभी ले आता हूँ।बड़े दिनों से अपने हाथ के मंचूरियन नहीं बनाए।सो आज बनाते है अपन दोनों मिल के।"

रीमा को विश्वास नहीं हो रहा था।दोनों किचन में अपने पुराने दिन याद करते रहे।आज बड़े दिनों बाद घर में हँसी गूंज रही थी।रीमा ने बड़े दिन बाद नीरज के साथ इतना समय बिताया।आज कमर दर्द,थकान सब गायब हो गया था।खाने के बाद नीरज ने टेबल साफ की और बोला,

"कल छुट्टी लेने की सोच रहा हूँ।"

"क्यों,क्या हुआ?" बर्तन रखते हुए रीमा बोली।

"कल डॉक्टर माधुरी से मिल आते है और शॉपिंग करके डिनर बाहर करते है।बोलो क्या खयाल है?"

रीमा की आँखें भर आयी और दौड़ के वह नीरज से लिपट गयी।सारी चिड़चिड़ाहट दूर हो गयी थी।वह समझ गयी कि नीरज भी उसके शारीरिक बदलाव को समझ गया था।

बिना गुलाबों के सही मायनों में आज उन दोनों ने रोज़ डे मनाया था।

शायद यही मायने होते है प्यार के,है न?


©डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा

7 फरवरी 2022


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Dr.Shweta Prakash Kukreja

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