कस्तूरी का मृग

About self assessment and existence

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Shubha Pathak
Shubha Pathak 01 Aug, 2022 | 0 mins read
#existence #selfassessment

खुद में खुद को ही ढूंढती मैं ऐसे

जंगल में चहुं ओर ढूंढे कस्तूरी का मृग जैसे,

देखती हर जगह, पूछती हर शख्स को,

कहीं देखा क्या तुमने, पुराने मेरे उस अक्स को?

गुमशुदा हुए जिसे न जाने कितना ज़माना हुआ,

ना मिल पाने का उससे, फिर कभी बहाना हुआ,

वो बेफिक्र सी शख्सियत, वो मासूम सी हंसी,

मिट गई दुनिया की तरकीबों से, सिलवटें माथे पर बनीं,

थककर फिर एक दिन, मूंद ली मैंने आँखें मेरी,

बोला कोई भीतर से, तू किसको हर पल ढूंढ रही?

खोज मत उसे बाहर, वो तो है तेरे ही अंदर,

देख ध्यान से बैठा है वो, तेरे मन के ही कोने में छुपकर।

जैसे रहती है कस्तूरी स्वयं मृग के ही भीतर,

पर वो खोजता है उसे समस्त उपवन के अंदर,

जैसे बनता है एक दिन हीरा पत्थर को तराशकर,

वैसे ही पा जाएगा तू खुदको, अंतर्मन में तलाशकर।

जैसे महकाती है कस्तूरी अपनी खुशबू से पूरे जंगल को,

वैसे ही महका दे अपने किरदार से तू इस धरती और अंबर को।

प्रश्नों और उत्तरों से ऊपर, स्वयं साक्षात्कार का जब पा लेगा जीवन,

देखेगा ये जग भी फिर चमक तेरी, कर लेगा तू खुदको इतना रोशन।


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